दशम् ग्रामीण कवि सम्मेलन

दिनांक- 19 जून 2016

स्थान- बटेश्वर मार्ग पर स्थित, ग्राम सुजावलपुर

अध्यक्षता- श्री उदयप्रताप सिंह

विशिष्ट अतिथि- कवि, श्री लाखन सिंह भदौरिया

आमंत्रित कविगण- श्री आलोक ‘बेजान’ श्री भगवान मकरन्द

संयोजन- शब्दम्

माटी को देखो नहीं, घृणा की आँखों से, माटी की महिमा समझो, ह्रदय उदार करो।।
माटी से कीमत है, माटी की मूरत की, ओ माटी के पुतलो, माटी से प्यार करो।

कवि लाखन सिंह भदौरिया ने जब माटी के ऊपर अपनी उपर्युक्त कविता पढ़ी तो ‘किसानों’ के चेहरे से माटी की ख़ुशबू का अनुभव किया जा सकता था। शब्दम् का दशम् ग्रामीण कवि सम्मेलन, बटेश्वर मार्ग पर स्थित ग्राम सुजावलपुर में आयोजित किया गया। कवि सम्मेलन में समसामयिक रचनाओं की हवा चली।

संस्था अध्यक्ष किरण बजाज द्वारा भेजे गए संदेश में कहा गया कि कविता की खेती से ग्रामीण मन समृद्ध होगा, सच तो यह है कि ग्रामीण जीवन स्वभावतः काव्यात्मक होता है। पेड़, पौधे, नदी, नाले, पशुपक्षी गाँव के वातावरण में प्रचुरता से छाए रहते है। प्रकृति स्वयं ईश्वर की सर्वोत्तम कविता है।"

प्रो. नन्दलाल पाठक ने अपने संदेश में कहा ‘‘गाँवों में जैसे मलेरिया उन्मूलन, पोलियो उन्मूलन के अभियान चलते रहते हैं, वैसे ही काव्य रस सेवन का अभियान भी चलते रहना चाहिए। कविता हमारे आन्तरिक पर्यावरण को स्वस्थ वातावरण प्रदान करती है। स्वस्थ वातावरण ही, वह बाहर का हो या भीतर का, हमें जीवन शक्ति प्रदान करता है।

कवि आलोक बेजान ने आज की राजनैतिक स्थिति को अपनी कविता के माध्यम से कुछ इस तरह दर्शाया "होते रोज अजूबे देखे, हमने इस संसार में, सूरज माथा टेक रहा है जुगनू के दरबार में। दुनिया की इस मण्डी में खोटे सिक्के चल जाते हैं, जनम-जनम के अंधे, आखों वालों को छल जाते हैं।"

कवि भगवान सिंह मकरन्द ने भ्रूण हत्या के विरुद्ध अपनी कविता की प्रस्तुति देते हुए कहा कि "कोख में मत मारौ, मैं बेटी भारत मैया की। मैं तो जी लूंगी खाय-खायकें झूठन भैया की"।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने कहा कि "सुन्दर विचारों को समाज में बोने का कार्य कविता करती है, जिससे हम सब प्रेम से रह सकंे। उन्होंने अपने काव्यपाठ में कहा कि "एक वक्त की रोटी पाते आधे हिन्दुस्तानी लोग, दौलत का बेशर्म प्रदर्शन करते हैं अभिमानी लोग, लागत से कम दाम पर करते खेती और किसानी लोग, इसे भाग्य का खेल बताकर करते है, शैतानी लोग।"

शब्दम् सलाहकार एंव वरिष्ठ कवि डॉ. ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने कार्यक्रम का हमेशा की तरह सार्थक ढंग से संचालन किया। उन्होने राम जटायू प्रसंग के माध्यम से आज के रावणों को बड़ा कड़ा संदेश दिया, उन्होने निम्न पंक्तियों के माध्यम से ऐसे रावणों के दुर्गति की कामना की।

"लाल-लाल लहु का भरा नदीष चाहिए, जिन बाहुओ ने वैदेही का हरण किया बल से, भोज में भुजाएँ वही पूरी बीस चाहिए और जिन नैनों ने निहारा है सिया को कुदृष्टि से वह बीस नैन नोचने को दस शीस चाहिए।"

ग्राम समिति के हाकिम सिंह, रघुवीर सिंह, प्रधान भवर सिंह, वीरेश्वर, रवी एवं दीपू ने अध्यक्षता कर रहे उदय प्रताप सिंह एवं आमंत्रित कवियों का शाॅल एवं हरित कलश से स्वागत किया। कार्यक्रम में उमाशंकर शर्मा, मंजर-उलवासै, हरीशंकर यादव एवं क्षेत्र के गण्यमान्य लोग उपस्थित रहे।

इसी के साथ शब्दम्-पर्यावरण मित्र द्वारा चलाए जा रहे "जिन्दगी चुनो, तम्बाकू नहीं" अभियान के अंतर्गत तम्बाकू छोड़ चुके 14 लोगों को हरित कलश देकर, जन समूह के सामने सम्मानित किया गया।

ग्रामीण कवि सम्मेलन में ग्राम सुजावलपुर तथा आस-पास के गांव के लगभग 1 हजार से अधिक श्रोतागण एक टकटकी के साथ कवि सम्मेलन को सुनते रहे। महिलाएं यहाँ अपनी परम्परावादी वेशभूषा विशेषतौर पर घूंघट डालकर काव्यरस का आनंद लेती रहीं। वहीं कुछ बुजुर्ग अपने जूतों के ऊपर बैठकर, सबकुछ भूलकर, कविता में खोते हुए नजर आए। बुजुर्ग रामलाल के अनुसार वे 68 साल के हो गए हैं, और इससे पहले उन्होंने कवि सम्मेलन नहीं देखा है।

शब्दम् टीम जब कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार कर रही थी, तब भी कई महिला पुरुष यह पूछते हुए नजर आए कि भइया यह कवि सम्मेलन क्या होता है, इसमें कुछ खाने-पीने को भी मिलेगा, क्या यह कोई मेला है? इन प्रश्नों से यह प्रश्न उठते हैं कि कविता ने जिन भारतीय गाँव से अपनी यात्रा शुरू की थी, और बड़े-बड़े कवि भी दिए थे, आज वही कविता गाँव से इतनी दूर कैसे चली गई। कवि सम्मेलन देखना तो अलग बात है, ग्रामीण लोगों ने अभी तक कवि सम्मेलन का नाम भी नहीं सुना है। क्या, बडे़-बड़े वातानुकूलित हाॅल में चंद लोगों के बीच मनोरंजन के रूप में कवि सम्मेलन अपनी सार्थकता दिखाता है? यह साहित्यकारों एवं सुधीजनों के लिए शोचनीय और चिन्तनीय प्रश्न है।

क्या आज के साहित्य जगत को एक ऐसा पूल तैयार नहीं करना चाहिए जो निःशुल्क गांव-गांव जाकर कवि सम्मेलन/साहित्यिक गोष्ठियां करे, जिससे ग्रामीण जनों को ना सिर्फ स्वस्थ वातावरण मिल सके बल्कि कालजयी भारतीय कविताएं भी पुनर्जीवित हो सकें?

काव्यपाठ करते कवि आलोक बेजान।

काव्यपाठ करते कवि भगवान मकरन्द।

काव्यपाठ करते कवि लाखन सिंह भदौरिया।

काव्यपाठ करते कवि डॉ. ध्रुवेन्द्र भदौरिया।

अध्यक्षीय वक्तव्य एवं काव्यपाठ करते उदयप्रताप सिंह।

ग्रामीण कवि सम्मेलन का एक दृश्य।

समूह छायांकन।

 

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