शास्त्रीय संगीत, नाटक एवं नृत्य

भारतीय संगीत के मुख्य रुप से तीन भेद किये जाते हैं। शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत और लोक संगीत। शास्त्रीय संगीत वह है जो शास्त्रीय नियमों के अन्तर्गत प्रचलित है। इसमें ध्रुपद, ख्याल, ठुमरी, टप्पा, दादरा आदि प्रकार हैं। भजन-गीत-ग़ज़ल आदि शैलियों को सुगम संगीत के नाम से पुकारा जाता है। इसमें कुछ शैलियों को शास्त्रीय आधार प्राप्त है, कुछ को नहीं। किन्तु लोक संगीत, शास्त्र के बन्धनों से सर्वथा मुक्त है। शास्त्रीय संगीत में गायन, वादन एवं नृत्य तीनों समाहित हैं।

नाटक साहित्य की वह विधा है जिसका परीक्षण रंगमंच पर होता है और रंगमंच युग विशेष की जनरुचि और तत्कालीन आर्थिक व्यवस्था के आधार पर निर्मित होता है। संस्कृत नाटकों के युग से ही 'आदर्शोन्मुख' तथा 'यथार्थोन्मुख' नाटक की दो पध्दतियाँ हमारे देश में सदा से चली आ रही हैं। यूनान तथा अन्य देशॉ की भाँति भारत में भी नाटक का आख्यान एवं संवाद ऋग्वेद से, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्ववेद से रस लेकर, पाँचवे वेद नाटय वेद की रचना की गयी। नाटक के प्राचीनकालीन रूप अब प्राय: लुप्त हो चुके हैं। पश्चिमी नाटकों के अनुकरण पर ही प्राय: सभी नाटक खेले जाते हैं। बीसवीं सदी के प्रारम्भ के पश्चात् नाटक का विकास उसके एकांकी और अनेकांकी, दोनों रुपों में हुआ है।

'शब्दम्' उपरोक्त कार्यक्रमों के आयोजन के लिए कटिबध्द है।

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