कार्यक्रम विषय- ‘प्रहलाद भक्तिसूत्र’ होली महोत्सव

दिनांक- 5 मार्च 2018, सोमवार

स्थान- संस्कृति भवन, हिन्द लैम्प्स परिसर, शिकोहाबाद

प्रहलाद भक्ति पर प्रवचन- पं. इन्द्रेश उपाध्याय शास्त्री जी

समय का सदपयोग ही मंजिल पाने का मूलमंत्र

श्रीमद भागवत कथा, साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन कराती है। समय का सदुपयोग करना सीखो, समय का सदुपयोग करने वाले कभी असफल नहीं होते हैं। समय, संपत्ति और सम्मान का जिसने आदर किया है, उसका हर किसी ने सम्मान किया है। यह धर्मिक प्रवचन पं. इंद्रेश उपाध्याय ने होली महोत्सव के अवसर पर संस्कृति भवन सभागार में प्रस्तुत किए।

पं. इंद्रेश उपाध्याय शास्त्री जी ने प्रहलाद भक्तिसूत्र पर बोलते हुए कहा कि पाप का पिता कौन है अगर पाप नहीं होता सब जगह सुख समृद्धि होती। पाप का पिता लोभ है, लोभ के कारण ही संसार में पाप बढ़ते हैं। जब मनुष्य के अंदर लालसा, लालच का वास बढ़ जाता है और सत्यमार्ग से इच्छाएँ पूरी न होने पर वह पाप करना शुरू कर देता है अर्थात लोभ को अपने विचारों में स्थान नहीं देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भगवान भक्ति का भूखा होता है वह अपने भक्त को कभी दुःखी नहीं देख सकता है। अगर कोई प्रेम से भगवान का स्मरण करता है तो भगवान साक्षात उसके सामने प्रकट होते हैं।

समय का सही उपयोग करना प्रहलाद सूत्र है जबकि समय का दुरूपयोग करने वाला हिरणाकश्यप है। भक्त प्रहलाद सत्य का रूप हैं तो हिरणाकश्यप पाप का रूप हैं।

बजाज इलेक्ट्रीकल्स के चेयरमेन श्री शेखर बजाज एवं शब्दम् अध्यक्ष किरण बजाज ने अतिथियों का आभार प्रकट किया।

‘प्रहलाद भक्तिसूत्र’ पर बोलते पं. इंद्रेश उपाध्याय।

प्रवचन से भाव विभोर होकर नृत्य की मुद्रा में श्री शेखर बजाज एवं श्रीमती किरण बजाज

समूह छायांकन।

श्रद्धेय श्री इन्द्रेश उपाध्याय जी का परिचय

वैदिक अध्यात्मि व्यास परंपरा की उत्ताल उर्मियों के रसमय संवाहक श्रद्धेय श्री इन्द्रेश उपाध्याय जी का जन्म विश्व प्रसिद्ध भागवत भास्कर श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री (ठाकुर जी) के यहाँ वृज वसुन्धरा की पावन राजधानी वृंदावन में दिनांक 7 अगस्त 1996 को हुआ। श्रीमती नर्मदा देवी उपाध्याय एवं श्रद्धेय (ठाकुरजी) की मेधावी संतान ने अपने प्रारंभिक शिक्षा के समय से ही पू0 गुरूदेव एवं अपने पिताश्री के मनोयोग से श्रवण किया।

शआपके भागवत शुभारंभ के समय भारत के शीर्ष संत स्वामी गुरूशरणानंद जी महाराज, स्वामी राजेन्द्र दास, देवाचार्य जी महाराज, योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज, पू0 रमेश भाई ओझा (भाई श्री), पू. मुरारी बापू आदि महापुरूषों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

 

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