पद्मश्री पं- सतीश व्यास द्वारा संतूर वादन-
सिरसागंज और शिकोहाबाद में कार्यक्रमों का आयोजन-

शब्दम् द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम की श्रंखला में स्पिक मैके के सहयोग से शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम संपन्न हुआ। इसके अंतर्गत पद्मश्री विभूषित संतूर वादक पंडित सतीश व्यास ने रागों की तान छेड़ी।

संतूर के सुरीले स्वरों के माध्यम से राग रागेश्वरी की रोमांचित करने वाली धुन ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। इसके बाद पंडितजी ने बधाई गीत ‘‘उतारें नजरिया बन्ना-बन्नी के संग बाजे शहनाई’’ के स्वरों को संतूर की धुन में प्रस्तुत किया। तबले पर उनके साथ संगत कर रहे रोहित मजूमदार ने भी अपने फन की बेहतर प्रस्तुति की। जिसे सुनकर श्रोताओं ने मुक्तकंठ से उनकी सराहना की।

इस अवसर पर व्यासजी ने संगीत की पंरपरा और उसके घरानों के बारे में स्कूली बच्चों को बताया। संतूर के स्वर और राग एवं तबले के रूपक और ताल की जानकारी भी दी। उन्होंने बताया कि संतूर मूलतः कश्मीरी संस्कृति का वाद्य है। इसका जन्म सौ तारों की वीणा से हुआ है।

शब्दम् अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज का संदेश प्रस्तुत किया गया। जिसमें श्रीमती बजाज ने कहा कि कोई भी कला हमारी संस्कृति के वैभव को प्रतिबिंबित करती है। इस मायने में संगीत की भूमिका बेजोड़ है। संगीत मनुष्य की संवेदनाओं को जागृत कर एक बेहतर इंसान बनाता है। विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि संगीत के प्रभाव से फल फूल और पौधे भी अच्छा विकास करते हैं। हमारी मानसिक स्थिति को अच्छा रखने में भी संगीत का प्रयोग बेहतर सिद्ध हुआ है।

मैनपुरी के कुंवर आर-सी- महाविद्यालय और शनिवार को सिरसागंज के ब्राइट स्कालर्स एकेडमी में भी शब्दम् और स्पिक मैके के संयुक्त तत्वावधान में पंडित सतीश व्यास ने संतूर वादन प्रस्तुत किया। जहां विद्यार्थियों ने उत्साह और उत्सुकता से वाद्य को निहारा और उसके स्वरों का आनंद लिया।

हिन्द परिसर में आयोजित संतूर वादन प्रस्तुत करते हुए पंडित सतीश व्यास।

संतूर वादन कार्यक्रम का आनन्द उठाते हुये श्रोता।

पद्मश्री पण्डित सतीश व्यास एवं साथी तबलावादक रोहित मजूमदार कार्यक्रम के उपरान्त हिन्द परिसर में प्राकृतिक छटा का आनन्द लेते हुये।


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