''फागुन दुई रे दिना''
दिनांक 23 मार्च 2005 को हिन्द लैम्प्स परिसर में हास्य श्रृंगार की सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। इस दिन मौसम का मिजाज तो रह-रह कर बिगड़ता रहा, किन्तु रस भींगे श्रृंगार गीत तथा गुदगुदी सहित उन्मुक्त हास्य की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को देर रात तक बाँधे रखा।
काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ गीतकार विष्णु सक्सेना द्वारा 'माँ सरस्वती' की वन्दना से हुआ। फिर आये 'पौपलर मेरठी'। उनकी पंक्तियाँ ''...मैं जिस हाल में हूँ मेरे सनम रहने दो, चाकू मत दो मुझे, कलम रहने दो.....'' ने श्रोताओं को बरबस हँसाया। वहीं कवयित्री मधुमोहिनी ने अपनी काव्य रचना '...रूप को श्रृंगार दे तो जानिये प्यार है, रंग को निखार दे तो जानिये प्यार है......' ने पूरे वातावरण में प्यार की मिठास भर दी।
गुरु सक्सेना ने जब विज्ञान और गणित जैसे दुरूह विषयों को हास्य की चाशनी चढ़ाकर परोसा तो खिलखिलाहटों की झड़ी लगी, जो देर तक बनी रही। सक्सेना जी ने नेताओं ओर नौकरशाही पर जमकर कटाक्ष किया। उनकी कविता '.....न राजा रहेगा, न रानी रहेगी, बस हमारी तुम्हारी कहानी रहेगी....' ने खूब तालियाँ बटोरीं।
कवि ओम व्यास ने इलेक्ट्रोनिक चैनलों के माध्यम से, आज परोसी जा रही पत्रकारिता की जमकर खिल्लियाँ उड़ायीं। उनकी कविता '.....अपन को क्या करना....' ने न केवल लोगों को हँसाया, वहीं कुछ सोचने को भी विवश कर दिया।
डॉ. विष्णु सक्सेना के सुमधुर गीतों ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। ''तपती हुई जमीं है, जलधार बाँटता हूँ, पतझड़ के रास्तों पर मैं बहार बाँटता हूँ.......'' जैसे तमाम गीतों को श्रोताओं ने खूब सराहा।
इस काव्य गोष्ठी में काव्य-रसिक श्रोताओं के अतिरिक्त, प्रशासनिक अधिकारियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
डा. विष्णु सक्सेना के गीत-अंश :
रेत पर नाम लिखने से क्या फ़ायदा
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर का दिल हमको कह तो दिया
पत्थरों पर लिखोगे, मिटेगा नहीं.............॥
......ऑंख खोली तो तुम रुक्मिणी-सी दिखीं,
बन्द की ऑंख तो राधिका तुम लगीं।
जब भी देखा तुम्हें शान्त-एकान्त में,
मीराबाई-सी एक साधिका तुम लगीं।
कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो
मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं।
रेत पर.......................।
ओम व्यास 'ओम' की करुणामयी कविता का एक अंश:
माँ चिन्ता है, याद है, हिचकी है,
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है।
माँ, चूल्हा धुऑं रोटी और हाथों का छाला है,
माँ जिन्दगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है।
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ फूँक से ठंडा किया हुआ कलेवा है।