हर संवेदनशील रचनाकार अपने समय के यथार्थ से टकराता है
शब्दम् की प्रथम वर्षगांठ पर आयोजित की गयी विचार संगोष्ठी

'षब्दम्' की स्थापना की प्रथम वर्षगांठ दिनांक 17 नवम्बर 05 को हिन्द परिसर स्थित 'शब्दम् वाचनालय' में एक विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। शब्दम् के तत्वावधान में आयोजित इस विचार संगोष्ठी में आमंत्रित रचनाकारों ने 'हिन्दी नवगीत में समकालीन यथार्थ की अभिव्यक्ति' पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि- 'हर संवेदनशील रचनाकार अपने समय के यथार्थ से टकराता है और अपनी रचनाओं में उन्हें अभिव्यक्त करता है।' हिन्दी नवगीत की परम्परा के प्रथम पुरूष निराला ने जीवन को समग्रता से देखा और अपनी रचनाओं में अपने समय के अन्तरंग और वाह्य यथार्थ को अभिव्यक्ति दी, वहीं से अपनी रचनात्मकता की प्रेरणा लेते हुए बाद के नवगीत कवियों ने अपनी रचनाओं में अपने समय के यथार्थ को पिरो कर व्यक्त किया।

प्रारम्भ में श्रीमती किरण बजाज ने सभी रचनाकारों के साथ माँ सरस्वती के चित्रपट पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर, शब्दम् की गत वर्ष की समाचार पत्रिका का लोकार्पण किया तथा सभी को हरीतिमा कलष भेंट किये।

इस नवगीत गोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए माहेश्वर तिवारी ने समकालीन नवगीतकारों की रचनाओं से उद्धरण देते हुए कहा कि ''यथार्थ का केवल इकहरापन ही नहीं बल्कि उसके प्रत्येक आयाम में समकालीन नवगीतकारों ने अभिव्यक्ति दी है। इसे निराला से लेकर यश मालवीय की पीढ़ी तक रचनाकारों में सरलता से देखा-परखा जा सकता है।'' उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक, सामाजिक तथा राजनीतिक यथार्थ को रचनाकारों ने अपनी रचना में पिरोया है।

चर्चा में भाग लेते हुए सुधांशु उपाध्याय ने अपने विस्तृत आलेख में विभिन्न कोणों से नवगीत के यथार्थ की विवेचना की। उन्होंने कहा कि यथार्थ, रचनाकार की जरूरत है और रचनात्मक दवाब भी। आज इस गोष्ठी में उपस्थित नवगीत रचनाकारों ने अपने दायित्व का निर्वहन बखूबी किया है।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध गीत कवि सोम ठाकुर ने कहा कि ''यथार्थ केवल एकपक्षीय नहीं होता बल्कि बहुमुखी होता है। वह आर्थिक, सामाजिक, मानसिक भी हो सकता है। इस सन्दर्भ में नवगीत सभी कांणों को भरने का प्रयत्न करता है उसका संवेदन संसार अत्यन्त विस्तृत है जिसमें रचनाकार की आत्मपरख अनुभूतियों के अलावा उतनी ही ऊर्जा के साथ वस्तुपरक सरोकारों के प्रति भी पूरी तरह प्रतिबद्धता है।

श्रीमती किरण बजाज ने उदगार प्रगट करते हुए नवगीतों की प्रस्तुति पर हर्ष व्यक्त किया साथ ही उन्होंने उपस्थित रचनाकार एवम् श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। उन्होंने श्रेष्ठ साहित्य की आवश्यकता पर बड़े सकारात्मक ढंग से टिप्पणियाँ दीं।

'शब्दम्' की प्रथम वर्षगांठ पर प्रकाषित स्मारिका का विमोचन
करते डॉ. माहेश्वर तिवारी एवं श्रीमती किरण बजाज।

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