कवि घाघ को समर्पित - कृषक काव्य सम्मेलन
ग्राम स्यारमऊ ''बाबा की बगीची'' में अमराई तले 21 मई 2005 को 'शब्दम्' की पहल पर आयोजित कृषक काव्य सम्मेलन में न केवल ग्रामीण रचनाकारों को उत्साहित किया, वहीं 'घाघ' की रचनाओं के स्मरण से, एक बार पुन: आधुनिक सन्दर्भों में उनके मौसम विज्ञान की सार्थकता सिध्द की।
श्री रामवीर सिंह 'भ्रमर शास्त्री' की गणेश वन्दना से प्रारम्भ हुये इस कार्यक्रम में, खितौली के श्री राजवीर, लाछपुर के श्री ब्रजेश कुमार, आमरी के श्री खजान सिंह ने अपने गाँव की सुगन्ध से रचे बसे गीतों को प्रस्तुत किया।
सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि श्री आराम सिंह शास्त्री ने 'घाघ' के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डाला तथा उन्हें प्रकृति का कवि बताया।
डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया जिसे उपस्थित किसानों द्वारा बहुत सराहा गया। कार्यक्रम में आसपास के गाँवों के किसान काफी संख्या में उपस्थित थे और उन्होंने इस काव्य सम्मेलन का भरपूर आनन्द उठाया।
डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया की 'महात्मा जटायु' रचना के कुछ पद :-
कटे हुए पंख और घायल शरीर था।
धरती का कण-कण लोहू से लाल था।
सिया का हरण हाय रोक नहीं पाया मैं
बार बार बस यही मन में मलाल था।
वेदना से बिद्ध हुए पड़े हुए थे गिध्दराज
साँसें थीं गिनीं चुनीं बहुत बुरा हाल था।
लुप्त होती स्मृति में काल की थी पदचाप
ऑंखें खोल देखा तो दशरथ का लाल था।
सीता के हित लड़ा इसीलिए पुण्य बढ़ा
गिद्ध को प्रसिध्द किया परोपकारी काम ने।
नाम लिया राम का तो खुल गया स्वर्गद्वार
दशरथ का लोक दिया राम जी के नाम ने।
भानुकुल के भानु ने अर्घ्य दिया ऑंसुओं से
जटाओं से जटायु की धूल झाड़ी राम ने।
स्वर्ग के लिए तो उनके दर्शन ही काफी थे
जाने कौन धाम दिया राम के प्रणाम ने।
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