युगीन काव्या

विगत दो दशकों से काव्या परिवार पूरी मेहनत, लगन और ईमानदारी से युगीन काव्या को अपने पाठकों तक पहुँचाता रहा है। सिर्फ कविता को समर्पित हिन्दी की यह छोटी-सी पत्रिका अपने साहित्यिक और सांस्कृतिक दायित्वों को बखूबी निभाती रही। युगीन काव्या का साठवाँ अंक एक विशेषांक के रूप में अपने पाठकों तक पहुँचा रह हैं।

इस अंक को तैयार करने में यथासंभव सावधानी बरती गई है। काव्या परिवार ने इस पर अथक परिश्रम किया है। शब्दम् को उनके सहयोग और सौजन्य का अवसर मिला इसके लिए शब्दम् सदैव आभारी रहेगा।

प्रसिद्ध कवियों की कुछ कविताएं-

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे
आज से दो प्रेम-योगी अब वियोगी रहेंगे
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे
सत्य हो यदि कल्प की भी कल्पना कर धीर बाँधूँ
किन्तु कैसे व्यर्थ की आशा लिए यह योग साधूँ (पं0 नरेन्द्र शर्मा)

दिव्यता दे माँ मुझे मैं गगन का तारा बनूँ
राष्ट्र-हित जीऊँ-मरूँ मैं धवल-ध्रुव तारा बनूँ
मैं नहीं अन्याय-अत्याचार के आगे झुकूँ
हो न कोई अशुभ मेरा विश्व का प्यारा बनूँ।।

चापलूसी कभी कोई कवि किसी की क्यों करें
शारदा का पुत्र रहकर ही सदा जीया करें।
चार दिन जीना जगत में स्वाभिमानी बन जियें
काल दस्तक पर दे जब शान से ही वो मरे।। (मोहनलाल गुप्ता

ढह रहे हैं सारे
ताश के महल आओ चलें खोजें
आदमी असल
आदमी
मिलावटी सामान हो गया
देशी
शराब की दुकान हो गया
कर रहे हैं आम भी
बबूल की नकल
राज
और नीति में मेल है कहाँ
सारा
कुछ पैसों का खेल है यहाँ
गल रहे हैं सारे
मोम के महल
चोर
चापलूस की चाँदी चहाँ
खादी
है उनके बचाव में यहाँ
खिल रहे हैं रेत में
रात को कमल ( सच्चिदानंद सिंह ‘समीर’)

To download Yugin Kavya Click here

next article