कार्यक्रम- जानकी देवी बजाज जयन्ती समारोह

दिनांक- 27 जनवरी 2015

स्थान- हिन्द परिसर, संस्कृति भवन

जानकी देवी बजाज की 123वीं जयन्ती पर शब्दम् व के.सी. क्लब के सयुक्त तत्वाधान में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।

एक तरफ कार्यक्रम में युवा प्रतिनिधित्व के तौर पर एन.एस.एस. कैम्प से आए हुए छात्र-छात्राएं वहीं हिन्दलैम्पस् प्रबन्धकगण एवं अन्य विद्धतजनों ने भी भाग लिया।

कार्यक्रम का प्रारम्भ जानकी देवी बजाज के प्रिय जाप ‘ओम नमो नारायणाय’ के जाप से हुयी। इसके बाद मन्दिर समिति ने सभी लोगों के साथ उनका प्रिय भजन ‘पायो जी मैंने रामरतन धन पायो....’ , ‘यदि मैं सुन्दर होती...’ जानकी देवी बजाज का प्रिय गीत गाया। इस अवसर पर जानकी देवी बजाज का एक ऑडियो विजुअल दिखाया गया, जिसमें बताया गया कि किस प्रकार एक महिला देश के लिए समर्पित भाव से अपना सबकुछ त्याग देती है और अपना सम्पूर्ण जीवन देश, समाज हित में न्यौछावर करती है।

श्री एस.के. शर्मा ने इस अवसर पर जानकी देवी बजाज के नाम से चल रही संस्थाओं की जानकारी सभागार में दी। कार्यक्रम का समापन ‘जन-गण-मन’ राष्ट्रगान से हुआ।

जानकी देवी बजाज पर आधारित पुरस्कार
1.आई.एम.सी. लेड़ीज विंग जानकी देवी बजाज पुरस्कार
2.जमनालाल बजाज एवार्ड फॉर वैलफेयर ऑफ विमेन एण्ड चिल्ड्रन (इन द मैमोरी आफ जानकी देवी बजाज)

जानकी देवी बजाज जीवन पर आधारित पुस्तकें

  1. मेरी जीवन यात्रा
  2. पत्र व्यवहार
  3. समर्पण और साधना
  4. सर्मान्जली
  5. एक जीवन्त प्रतिमा
  6. जानकी सहस्रनाम

जानकी देवी बजाज के नाम पर संचालित संस्थान

  1. जानकी देवी बजाज सेवा ट्रस्ट, वर्धा
  2. जानकी देवी बजाज ग्राम विकास संस्थान, पूना
  3. जानकी देवी बजाज इन्सटिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज्
  4. जानकी देवी बजाज विज्ञान महाविद्यालय, वर्धा

जानकीदेवी बजाज: जीवन परिचय

जानकीदेवी बजाज के धनी व्यक्तित्व एवं उससे भी अधिक विशाल एवं विशद कृतित्व को दो तीन पृष्ठों में समेट पाना गागर में सागर भरने जैसा है।

जानकी देवी का जन्म जावरा (म. प्र.) के एक धनाढ्य मारवाडी वैष्णव परिवार में 7 जनवरी 1893 को हुआ था। उनके माता-पिता रामानुज सम्प्रदाय के एक धार्मिक और उदार परिवार के सदस्य थे। धार्मिक परिवार के होने के नाते जानकी देवी 6-7 वर्ष की अल्प आयु में भी एकान्त में ओम नमो नारायणाय का जाप किया करती थीं। वे नियमित रूप से पूजा करतीं और मंदिर जाया करती थीं।

उस समय की समसामयिक सामाजिक परम्पराओं और विश्वासों के कारण वे विद्यालय की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकीं। वे पढ़ना-लिखना सीखना चाहती थी, अतः उनकी इस इच्छा को देखते हुये उनके पिता गिरधारी लाल जी ने उनको घर पर ही पढाने की व्यवस्था कर दी। साढ़े 8 वर्ष की आयु में उनका विवाह वर्धा मध्यप्रदेश में जमनालाल जी बजाज के साथ हो गया तथा वे बजाज परिवार में गृह लक्ष्मी बनकर 1902 में अपने ससुराल वर्धा आ गईं।

जानकी देवी को प्रेरणा देने वाले सबसे बड़े स्रोत उनके पति थे जमनालाल जी एक धनाढ्य व्यवसायी, महात्मा गांधी के अनुयायी, समाज सुधारक, महान देशभक्त और गौ भक्त थे। उन्होंने अपनी पत्नी को सामान्य ज्ञान की शिक्षा एवं समसामयिक घटनाओं की जानकारी देने के लिए एक पारसी महिला को उन्हे अखबार पढ़ कर सुनाने के लिए नियुक्त कर दिया। अपने प्रारम्भिक वैवाहिक जीवन में वे सोना- चांदी ही नहीं वरन् मोती-हीरों से सजी-धजी रहती थीं। दाम्पत्य जीवन के फलस्वरूप उन्होंने तीन पुत्रियों- कमला, मदालसा और उमा और दो पुत्रों - कमलनयन और रामकृष्ण को जन्म दिया ।

उस युग में मारवाड़ी समाज में गृह वधुएं लंबा घूंघट निकालती थी। 1919 में जमनालाल जी ने उन्हें परदा छोड़ने का गांधी जी का निर्देश सुनाया और उन्होंने तत्काल इसका पालन किया। 1921 में 28 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने सारे स्वर्ण, रजत, हीरे आदि आभूषण त्याग कर देश को अर्पण किए, और फिर विदेशी कपड़ो को भी त्याग दिया। उनके विदेशी वस्त्र, इन वस्त्रों में उनके घर के, दुकान और मंदिर के वस्त्र सम्मिलित थे, सात दिन तक वर्धा के चैक पर आग में जलाये जाते रहे। उस समय जानकी देवी को समाज का विरोध और बहिष्कार भी सहन करना पड़ा। तब से पूरा परिवार खादीमय हो गया।

गांधीजी के सत्य और अंहिसा के आह्वान और राष्ट्र और समाज की उन्नति के लिए गांधी की शिक्षाओं का पूर्णतः पालन करने वाली प्रथम महिलाओं में से थी। उन्होंने स्वयं ही खादी पहनी और स्वयं ही चरखा चलाया तथा अनेकानेक महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित किया एवम् घर-घर जाकर चरखा चलाना सिखाया। वे स्वयं स्वीकार करती हैं कि 1920 आते-आते तक जमानालाल जी बापू के पांचवे पुत्र और जानकी देवी उनकी पांचवी पुत्र वधू बन चुके थे। खादी की उन्नति और गौ सेवा के अतिरिक्त कूपदान भी अनके जीवन के महत्वपूर्ण अंग बन गये। उन दिनों हरिजन (जो नाम स्वयं गांधीजी ने उन्हें दिया था) अस्पृश्य माने जाते थे। पति जमनालाल के निर्देश पर जानकी देवी ने हरिजन को अपने घर में प्रवेश कराया। बजाज परिवार द्वारा वर्धा में बनाये गये लक्ष्मीनारायण मंदिर में विनोबा जी के नेतृत्व में 17 जुलाई 1928 को हरिजन को प्रवेश कराया गया। घर में भी हरिजन को रसोई में स्थान दिया गया।

संत विनोबाभावे बजाज परिवार के आध्यात्मिक मार्ग दर्शक थे।जानकी देवी बजाज, विनोबा जी को अपना गुरू और छोटा भाई मानती थी

गांधीजी, विनोबा जी और जमनलाल बजाज जी के उनके जीवन पर पड़े प्रभाव के विषय में वह स्वयं कहती है ‘‘मैं एक अशिक्षित महिला थी लेकिन इन तीन महान व्यक्तियों ने मेरे जीवन पथ को प्रकाशवान कर दिया’’। गांधीजी, विनोबा और जमनालाल जी के प्रभाव के कारण ही जानकी देवी दूसरों के लिए मार्गदर्शक बन गयी। उनके व्यक्तित्व का विकास होता गया और उनके कार्य और क्रियाकलाप सारे देश में छा गये। राष्ट्र की सेवा उनके व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण अंग बन गया। उन्होंने अपने पति के मार्ग का अनुसरण किया और स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान बडी-बडी मीटिंगो को निर्भय होकर सम्बोधित भी किया।

उन्होंने अपनी संतानों को स्वतंत्रता आन्दालेन के यज्ञ में लगा दिया। उनकी बड़ी पुत्री कमला उनके साथ बिहार गयीं और वहां अनेक भाषण दिये। उनके बड़े पुत्र एवं बड़ी पुत्र वधू ने स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लिया और स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान दोनों को जेल भी जाना पड़ा। उनके सबसे छोटे पुत्र रामकृष्ण ने कम आयु के होने के कारण गांधी जी द्वारा निषेध किये जाने पर भी सत्याग्रह में भाग लिया और उन्हें 1941-42 में जेल जाना पड़ा स्वयं जानकी देवी भी जेल गयीं, उन्हें पुलिस की यातनाओं को भी सहन करना पड़ा। लड़कियों या लड़कोें के विवाह बहुत ही सादगी, खादी के कपड़ों में बिना कुछ दिये लिए हुआ।

उनमें ख्याति की आकांक्षा भी नहीं थी। भारत सरकार ने त्याग, समर्पण और देश भक्ति के लिए 1956 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया और देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद द्वारा उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया।

अपने जीवन के अंतिम क्षण में भी उन्होंने विनोबा जी द्वारा प्रारंभ किये गए गौ-हत्या के विरूद्ध आंदोलन में भी पूर्ण सक्रियता के साथ भाग लिया। वह आजीवन अखिल भारतीय गौ सेवा संघ की अध्यक्ष रहीं। दिनांक 21 मई 1979 को इस राष्ट्रभक्त, गौभक्त, समाजसुधारक और सादगी की मूर्ति महिला ने वर्धा में उनका देहान्त हो गया।

उनकी अंतिम इच्छा थी कि वर्धा में जहां उनके पति की अस्तियां जिस पेड़ के नीचे डाली गई है वहीं उनकी भी अस्थियां विसर्जित की जायें। उसी पेड के नीचे उनकी भी अस्थियां मिट्टी में डाल दी जाए। इसके पीछे उनका यह भाव रहा कि शरीर मिट्टी का है उसे मिट्टी में ही मिलना चाहिए।

फोटो परिचय-

जानकी देवी बजाज ऑडियो विजुअल।

‘राष्ट्रगान’ के समय सभागर का चित्र।

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