राष्ट्रप्रेम और चरित्र निर्माण को समर्पित सातवां ग्रामीण कवि सम्मेलन

सत्ता की उस राजवधू को लूटा पहरेदारों ने

‘जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में, गांव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में।’अदम गोंडवी की ये पंक्तियां हमारे गांवों मंे विकास की अनुपस्थिति को दर्शाती हैं। गांवों में भौतिक विकास से ज्यादा सांस्कृतिक विकास की कमी होती जा रही है। शब्दम् संस्था द्वारा गांवों में संास्कृतिक पुर्नजागरण हेतु कविता के माध्यम से निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

इसके लिए शहर से दूर किसी गांव में ग्रामीण कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। जिसमें ग्राम्य परिवेश के चुने हुए कवियों को बुलाया जाता है। उनके द्वारा ऐसी कविताएं प्रस्तुत की जाती हैं, जिनसे देश, समाज और अपने परिवार को बेहतर बनाने की प्रेरणा मिले।

19 जनवरी 2014 को ग्रामीण कवि सम्मेलन का सातवां आयोजन जूनियर हाईस्कूल ग्राम कंथरी में किया गया। मुरैना ( मध्यप्रदेश) के बीहड़ क्षेत्र से आए कवि राजवीर सिंह भारती ने नई पीढ़ी के बिगड़े संस्कारों के संबंध में अपनी कविता के माध्यम से कहा कि टीवी और मोबाइल फोन बच्चों का दुश्मन बन गया है। यह बीमारी अब शहर से गांवों में भी पहुंच रही है। शिक्षक और मांबाप ध्यान दें तो युवाओं के चरित्र को सुधारा जा सकता है।

ओजस्वी कवि कुलदीप अंगार ने देश प्रेम की भावना को कुछ इस प्रकार स्वर दिए, जिसका प्रतिदिन अभिषेक किया वीरों की रक्त फुहारों ने, सत्ता की उस राजवधू को लूटा पहरेदारों ने। गीतकार डाॅ. राकेश सक्सैना ने कहा, नई सदी के दौर का ये मनचला मिजाज है, राम जाने ये किस तरफ जा रहा समाज है। खान-पान चाल-ढाल पश्चिमी लिबास है, चमकदमक की जिंदगी है, भोग है विलास है।

राजस्थान के अलवर जिले से आए कवि सुरेन्द्र सार्थक ने बेटियों को बचाने के लिए एक मार्मिक कविता का पाठ करके उपस्थित जनसमुदाय को सोचने पर विवश कर दिया। कवतिापाठ करते हुए श्री सार्थक ने कहा, ‘उन दृश्यों को देखकर मेरी अंतर्रात्मा रोती है, कराहती है। बाबू एक कन्या ऐसा नसीब लेकर क्यों आती है।’ एक अन्य रचना में उन्होंने कहा ‘सच्चाई का हथौड़ा मुकद्दर में सितारे जड़ भी सकता है, अगर हो नीयत में खोट तो उल्टा पड़ भी सकता है।’

महिलावर्ग का प्रतिनिधत्व करते हुए कवियत्री सुधा अरोड़ा ने न्यौछावर हो गई वीरांगनाओं की स्मृतियों को प्रस्तुत कर उपस्थित युवाओं एवं युवतियों के हृदय में देशप्रेम के भावों को भरा। उन्होंने कविता प्रस्तुत की - देवभूमि पै मैं वीर बेटियों का वंश हूं, लक्ष्मीबाई पद्मिनी का मैं भी एक अंश हूं।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह ने ग्रामीणों के बीच कविता के संस्कार पैदा करने के लिए शब्दम् द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने अपने काव्यपाठ में कहा - परतंत्रता के अभिमान को भुलाने हेतु, राष्ट्रीयता का स्वाभिमान भी जरूरी है। किंतु अब भी अंग्रेजी को निज भाषा जो मानते हैं, उनके डीएनए की पहचान भी जरूरी है। मुकेश मणिकांचन एवं अरविंद तिवारी ने भी काव्यपाठ किया।

शब्दम् अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज द्वारा भेजे गए संदेश को प्रस्तुत किया गया। संस्था के न्यासी प्रो. नंदलाल पाठक द्वारा भेजी गई पंक्तियों- ‘‘जिस भूमि पर मस्तक उठाए चल रहा हूं मैं, हो उस धरा की गोद में अंतिम शयन मेरा।’ने देश के प्रति भावना का प्रसार किया।

आयोजन के सहयोगी लक्ष्मीनारायण यादव ने श्री उदय प्रताप सिंह एव ंविशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित बीएसए डाॅ. जितेन्द्र सिंह यादव का स्वागत किया। ग्राम प्रधान बंगाली लाल एवं हिन्दलैंप्स के ईडी बीबी मुखोपाध्याय ने कवियों एवं शब्दम् सलाहकारों का स्वागत किया। शब्दम् सलाहकार डाॅ. महेश आलोक ने अंत में सभी का आभार प्रकट किया।

भीषण शीत में पूरे उत्साह के साथ आसपास के गावों से सैकड़ों लोग कविता के माध्यम से सामाजिक विडम्बनाओं की सच्चाइयों को जानने के लिए पहुंचे। चरित्र निर्माण और देश प्रेम को समर्पित कविताओं ने कड़ाके की ठंड में मौजूद जनसमुदाय को झकझोर दिया।

फोटो परिचय -

ग्रामीण कवि सम्मेलन में काव्यपाठ करते हुए कवि सुरेन्द्र सार्थक

ग्रामीण कवि सम्मेलन में काव्यपाठ करते हुए कवि कुलदीप अंगार

ग्रामीण कवि सम्मेलन में काव्यपाठ करते हुए विशिष्ट अतिथि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी।

ग्रामीण कवि सम्मेलन में काव्यपाठ करते हुए कवियत्री सुधा अरोड़ा।

कवि सम्मेलन का आनंद उठाते हुए सुधी श्रोतागण।

कवि सम्मेलन का आनंद उठाते हुए स्कूलों के बच्चे।

 

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