शिक्षक सम्मान समारोह एवं ‘संस्कार निर्माण में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर चर्चा

दिनांक- 4 सितम्बर 2017

अध्यक्षता- श्री उदयप्रताप सिंह

सम्माननीय शिक्षक- श्री उमाशंकर शर्मा, डॉ. राजश्री, डॉ. ज़मीर अहमद

स्थान- हिन्द लैम्प्स परिसर स्थित, संस्कृति भवन

विचार बदल गया, तो संसार बदल गया।

प्रमुख शिक्षाविद, संगीतकार और भारत सरकार की बाल संरक्षण समिति की सदस्य डॉ. राजश्री ने शब्दम् संस्था शिकोहाबाद द्वारा सम्मानित होने पर कहा, विचारों का बदलना छात्र और शिक्षक के जीवन में महत्त्वपूर्ण है। शब्दम् संस्था ने ‘शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वाले तीन शिक्षकों का सम्मान संस्कृति भवन में किया। डॉ. राजश्री के अलावा प्रबु़द्ध शिक्षक और चिंतक श्री उमाशंकर शर्मा तथा अध्यापक डॉ. ज़मीर अहमद को भी सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप इन्हें शाल, प्रशस्ति पत्र, नारियल और वैजयन्ती माला और फलों की टोकरी प्रदान की गई।

श्रीमती किरण बजाज ने अपने संदेश में कहा कि किसी राष्ट्र के सर्वनाश के लिए एटाॅमिक बम या मिसाइल की जरूरत नहीं है। उसके लिए शिक्षा व्यवस्था को दोषपूर्ण बना देना ही पर्याप्त है। राष्ट्रनिर्माताओं की पूर्ति करना शिक्षक का महत्त्वपूर्ण दायित्व है। अतः शिक्षक सबसे बड़ा राष्ट्रनिर्माता होता है।

श्री नन्दलाल पाठक ने अपने संदेश में गीता की शिक्षाओं का हवाला देते हुए कहा, आदर्श शिक्षक वह है जो छात्र को आत्म निरीक्षण के लिए प्रेरित कर सके। हर अनुभव आत्मशिक्षण का आधार होता है। इस प्रकार ‘सारा जीवन आत्मशिक्षण है’।

इस अवसर पर आयोजित शैक्षिक गोष्ठी में चिंतक और शिक्षक उमाशंकर शर्मा ने कहा यदि छात्र विराट के सौन्दर्य में विभोर हो सके तो यह शिक्षक की सफलता है। अध्यापक का आचरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अन्य पेशे में आचरण से विचलन बर्दाश्त किया जा सकता है लेकिन शिक्षण जैसे पवित्र पेशे में हर्गिज नहीं किया जा सकता।

गोष्ठी में डॉ. राजश्री ने कहा कि संस्कार के मूल में आदर्श विचार होते हैं। विचार सत्य एवं शाश्वत है। विचार बदल गया तो संसार बदल गया। छात्रों को आत्मनिरीक्षण हेतु पे्ररित करना सफल शिक्षक का महत्त्वपूर्ण गुण है।

डॉ. ज़मीर अहमद ने कहा कि छात्रों का समग्र विकास करना ही शिक्षक का लक्ष्य है।

डॉ. राजश्री का परिचय

डॉक्टर राजश्री, संगीत ( गायन ) एवं दर्शनशास्त्र में परास्नातक उपाधियों के अतिरिक्त बी.एड. एवं एम.एड. के साथ ‘ शिक्षा-शास्त्र ’ में डॉक्टरेट की उपाधि से अलंकृत हैं। यह उल्लेखनीय है कि डॉक्टर राजश्री ने अपनी पूरी शिक्षा, शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात दयालबाग शैक्षणिक संस्थान से प्राप्त की है।

अध्यापन एवं समाज सेवा आपकी विशिष्ट उत्कंठा एवं लालसा के विषय हैं।

भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं संस्कृति के उत्थान और युवाओं में उनके प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संस्था ‘स्पिक मैके’ की पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आप 2004 से समन्वयक हैं। बिना किसी लाभ- अर्जन के चलने वाली यह गैर सरकारी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसमें विश्व स्तरीय महिला एवं पुरुष कलाकार हैं। आजकल डाॅक्टर राजश्री वर्ष में शास्त्रीय संगीत के 50-60 कार्यक्रम विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में आयोजित कराती हैं।

डॉक्टर राजश्री , उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त बाल कल्याण समिति आगरा की सदस्य हैं। आप सन् 1999 से फिरोज़ाबाद के दाऊदयाल महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय में शिक्षण कार्य कर रही हैं और इस प्रकार आपको बी.एड़ और एम.एड़. के शिक्षक-प्रशिक्षण (अर्थात् ज्मंबीमतेष्ज्तंपदपदह ) का 18 सुदीर्घ वर्षों का अनुभव है और यह निरन्तर जारी है।

इस प्रकार डॉ राजश्री पूर्ण रूप से से ‘शिक्षण’ और ‘समाज-सेवा’ को समर्पित हैं।

संस्था उनके स्वस्थ एवं सुदीर्घ सुजीवन की सुकामना करती है।

डॉ. ज़मीर अहमद का परिचय

09 अप्रैल, 1954 को जन्में डॉ ज़मीर अहमद, के. के. स्नातकोत्तर महाविद्यालय इटावा के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष पद से सेवा-निवृत्त हैं, प्राध्यापक रूप में आप अपने विद्वता पूर्ण एवं सरस लेक्चर्स के कारण इतने लोकप्रिय रहे कि कक्ष में सीट न मिलने पर छात्र अपने रूमाल और छात्राएँ अपने दुपट्टे जमीन पर बिछाकर उन पर बैठ कर आपकी कक्षाओं में सम्मिलित होते रहते थे। विद्यार्थियों के बीच उनकी लोकप्रियता का ही यह परिणाम रहा कि वे उनमें अनुशासन बनाये रखने में पूर्ण सफल रहे और इस क्षेत्र में भी वे बहुत सजग रहे कि छात्रों में धूम्रपान जैसी कोई अवांछित आदत पनपने ही न पाये।

आपका शोध-प्रबन्ध, साहित्य में नोबल प्राइज प्राप्त, अंग्रेजी उपन्यासकार विलियम गोल्डिंग के उपन्यासों पर है, स्वयं विलियम गोल्डिंग (अब दिवंगत) का डॉ. ज़मीर को हस्तलिखित पत्र उनकी विशेष उपलब्धि है।

विभिन्न विषयों पर 46 लघु-शोध प्रबन्धों का निर्देशन आपने किया है। अंग्रेजी की विभिन्न स्तरीय पत्रिकाओं में आपके शोध-परक, आलेख प्रकाशित होते रहे हैं।

विभिन्न राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में आयोजित सेमीनार्स में अपने विषय के अतिरिक्त मानवाधिकार और निर्धनता, पर्यावरण-प्रदूषण, जैसे विषयों पर आपके आलेखों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई और राष्ट्रीय एकता और धर्म निर्पेक्षता जैसे विषयों पर आपकी वार्ताएँ प्रसारित हुईं।

अंग्रेजी विषय पर आपकी, छात्र छात्राओं के लिए उपयोगी, कई स्तरीय पुस्तकें प्रकाशित हुईं और कई अन्य प्रकाशनाधीन हैं। सेवा-निवृत्ति के पश्चात् भी आप आर्थिक रूप से निर्बल छात्र-छात्राओं के हितार्थ शिक्षा की अलख जगाए हुए हैं और इस हेतु वे पूर्ण रूप से समर्पित हैं। संस्था उनके स्वस्थ एवं सुदीर्घ सुजीवन की सुकामना करती है।

श्री उमाशंकर शर्मा ‘परिचय’

श्री उमाशंकर शर्मा एक ऐसे ‘मकनातीसी’ व्यक्तित्व के धनी हैं कि जीवन के हर क्षेत्र में जिनके सम्पर्क में वे रहे वे उनके लिए एक अनुकरणीय बन गये। जिन्होंने उनका छात्र-जीवन देखा है वे जानते हैं कि ऐसे छात्र ही आदर्श शिक्षक बनने की प्रतिभा रखते हैं। शिक्षण कार्य तो उन्होंने लगभग दो वर्ष ही किया किन्तु शिक्षा क्षेत्र से उनका जुड़ाव बहुत और बहुत महत्त्वपूर्ण रहा।

शिक्षण के ही एक गुरुतर दायित्व अर्थात् उप विद्यालय निरीक्षक का पद आपने लगभग 18 वर्ष तक सम्हाला। इस पद पर रहते हुए आप शासन की ओर से विदेशों से आने वाले अतिथियों के सम्पर्क में आने पर आपने आगरा सहित भारत भर के कला, साहित्य, संस्कृति, दर्शन और इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठों को उनके माध्यम से अनेक देशों तक पहुँचाया।

आज अस्सी वर्ष से भी अधिक आयु में श्री शर्मा अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से सलाहकार अध्यक्ष, संरक्षक एवं मार्ग दर्शक के रूप में समाज एवं देश सेवा में निरत हैं। ‘‘श्री शर्मा वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति की स्थानीय इकाई के मुख्य संरक्षकों में से एक हैं और हमें फ़ख़्ऱ है कि वे शब्दम् सलाहकार मंडल के वरिष्ठतम सदस्य हैं।’’

संस्था उनके स्वस्थ एवं सुदीर्घ सुजीवन की सुकामना करती है।

फोटो परिचय

सभागार में उपस्थित अतिथिगण

सभागार का दृश्य।

समूह छायांकन।

डॉ. राजश्री को सम्मानित करते शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य।

डॉ. ज़मीर अहमद को सम्मानित करते शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य।

श्री उमाशंकर शर्मा को सम्मानित करते शब्दम् सलाहकार समिति के सदस्य।

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