शर्म आ रही है ना उस समाज को जिसने उसके जन्म पर खुल के जश्न नहीं मनाया शर्म आ रही है ना उस पिता को उसके होने पर जिसने एक दिया कम जलाया शर्म आ रही है ना उन रस्मों को उन रिवाजों को उन बेड़ियों को उन दरवाजों को शर्म आ रही है ना उन बुजुर्गों को जिन्होंने उसके अस्तित्व को सिर्फ अंधेरों से जोड़ा शर्म आ रही है ना उन दुपट्टों को उन लिबासों को जिन्होंने उसे अंदर से तोड़ा शर्म आ रही है ना स्कूलों को दफ्तरों को रास्तों को मंजिलों को शर्म आ रही है ना उन शब्दों को उन गीतों को जिन्होंने उसे कभी शरीर से ज्यादा नहीं समझा शर्म आ रही ना राजनीति को धर्म को जहाँ बार बार अपमानित हुए उसके स्वप्न शर्म आ रही है ना खबरों को मिसालों को दीवारों को भालों को शर्म आनी चाहिए हर ऐसे विचार को जिसने पंख काटे थे उसके शर्म आनी चाहिए ऐसे हर ख़याल को जिसने उसे रोका था आसमान की तरफ देखने से शर्म आनी चाहिए शायद हम सबको क्योंकि जब मुट्ठी में सूरज लिए नन्ही सी बिटिया सामने खड़ी थी तब हम उसकी उँगलियों से छलकती रोशनी नहीं उसका लड़की होना देख रहे थे उसकी मुट्ठी में था आने वाला कल और सब देख रहे थे मटमैला आज पर सूरज को तो धूप खिलाना था बेटी को तो सवेरा लाना था और सुबह हो कर रही ______प्रसून जोशी

21वाँ आईएमसी लेडीजविंग जानकीदेवी बजाज पुरस्कार-2019 रूमा देवी को 7 जनवरी 2020 को मुंबई के आईएमसी सभागार में 2019 का जनकीदेवी बजाज पुरस्कार बाडमेर राजस्थान की ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान की अध्यक्ष रूमादेवी प्रदान किया गया। विख्यात गीतकार] कवि] लेखक विज्ञापन जगत के जानेमाने व्यक्ति तथा भारतीय फिल्म सेंसरबोर्ड के अध्यक्ष श्री प्रसून जोशी के हाथों यह पुरस्कार दिया गया।

सन् 1993 में आईएमसी लेडीज विंग द्वारा तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज की प्रेरणा व पहल से स्थापित यह पुरस्कार प्रतिवर्ष ग्रामीण उद्यमशीलता के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान के लिये एक महिला को दिया जाता है।

इस वर्ष की पुरस्कृत रूमादेवी ने अत्यंत विषय पारिवारिक] सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों के बावजुद केवल अपनी निष्ठा तथा साहस से 75 गांवों की 22000 कारीगर महिलाओं के लिये न केवल आय के साधन उपलब्ध किये बल्कि देश-विदेश में उनहें एक पहचान भी दी। अंतरराष्ट्रीय फेशन डिज़ाइनरों को उन्होंने ग्रामीण महिला कारीगरों के घर पर लाखड़ा किया और इस तरह उन दोनों के बीच सीधा संपर्क जोड़ दिया।

अपने भाषण में रूमादेवी ने अपनी इस यात्रा का सजीव वर्णन किया और आह्वान करते हुए कहा] ‘महिला] महिलाओं का सम्मान करें] उसे समर्थन और सहारा दें] खुद के लिए खुद लड़े अपने हुनर के जरिये आगे बढ़े] स्वावलंबी बने] खुर पर विश्वास है तो अड़े रहे और खड़े रहें।

मुख्य अतिथि प्रसून जोशी ने अपने अत्यंत प्रेरक अभिभाषण में कहा कि जानकीदेवी जैसी व्यक्तित्व के लिये महिला मंडन करने की आवश्यकता नहीं होती] स्वतः ही उनके प्रति श्रद्धा का भाव जागृत हो जाता है। उनका जीवन संघर्ष स्वयं प्रेरणा बन जाता है। हम हमेशा जानना चाहते हैं कि जिसे सत्य की वे वकालत करते हैं] उसे वे अपने जीवन में कैसे उतारते हैं। किंतु ऐसा लगता है कि नारी संघर्षों के मामले में अभी समाज बदला नहीं है] हमें एक ऐसा समाज चाहिए जहाँ केवल ‘अपवाद’ का उत्सव न मनाया जाय] क्योंकि इन्हें चुन-चुनकर] खोज-खोज कर लाना पड़ता है।

भेदभाव के संदर्भ में प्रसून जोशी ने कहा कि दुःख तो इस बात है कि महिला-महिला के बीच हम भेद करते हैं। कामकाजी महिला और एक गृहणी के बीच कारण है हर चीज का मुद्रीकरण कमाई के चश्में से हम देखते हैं अब जिसने हमें पाला है] पोसा है उसे कीमत में कैसे आंका जा सकता है!

अंत में प्रसून जोशी ने अपनी कुछ कविताएं व एक गीत भी सस्वर सुनाया जिन्हें श्रोताओं ने बहुत सराहा।

लेड़ीज विंग की अध्यक्ष वनित भंडारी ने स्वागत भाषण दिया और पुरस्कार समिति की अध्यक्ष नयनतारा जैन ने धन्यवाद ज्ञापन । चयन समिति के अध्यक्ष मुकुल उपाध्याय ने जानकीदेवी के अपने संस्मरण सामुर किये। कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रियदर्शिनी कानोड़िया ने किया।

फोटो केप्सन

पुरस्कार प्रदान समारोह- बायें से नयनतारा जैन] प्रसून जोशी] रूमादेवी] वनिता भण्ड़ारी] मुकुल उपाध्याय

 

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