चरित्र निर्माण श्रंखला:
बहन-बेटी बचाओ अभियान’
स्वयं को पहचानो और बन जाओ देवी दुर्गा
चरित्र निर्माण की श्रंखला में रक्षाबंधन से भाई दूज (दीपावली) तक बहन-बेटी बचाओ श्रंखला चलाई गई। रक्षाबंधन के अवसर पर स्कूल-कालेजों में परिचर्चा, समूह चर्चा एवं सुबह की प्रार्थना के समय वैचारिक उद्बोधन के माध्यम से बहन-बेटी को समृद्ध बनाने के लिए जागरूकता लाई गई। उन महत्वपूर्ण बिन्दुओं को प्रस्तुत किया गया जिन पर चल कर इस दिशा में सुधार किया जा सकता है।
इसके उपरांत नवदुर्गा पर्व पर 8 अक्टूबर को समूह चर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें युवाओं को खासतौर से शामिल किया गया। जबकि मुख्य रूप से शिक्षक और बुद्धिजीवी लोग उसका हिस्सा बने। सभी ने एक स्वर में कहा कि नारी, शक्ति का स्वरूप है और उसे स्वयं को पहचानना होगा, दुर्गा बनाना होगा।
कार्यक्रम का शुभारंभ जनपद के वरिष्ठ अधिवक्ता अनूपचंद्र जैन ने किया। उन्होंने कहा कि नारी सशक्तिकरण तभी संभव है जब पुरुष, नारी के प्रति अपनी दृष्टि को बदलेगा। श्रीमती किरण बजाज के संदेश में आर्थिक, शैक्षिक, पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से नारी को सुरक्षित और मजबूत बनाने की पुरजोर अपील की गई। उनके संदेश में प्रस्तुत प्रश्नों ने सभी को सोचने पर विवश किया। जो प्रश्न उठाए गए वह इस प्रकार थे-
1) बहन सशक्त कैसे हो ?
आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, शैक्षणिक, शारीरिक एवं वैचारिक रूप से सशक्त एवं स्वतंत्र बनाने हेतु क्या कदम उठाए जाने चाहिए|
2) बहन सुरक्षित कैसे हो ?
सार्वजनिक स्थानों, शैक्षणिक संस्थाओं, सरकारी एवं गैरसरकारी कार्यस्थलों आदि में उसके मान और मर्यादा की कैसे रक्षा हो।
3) बहन कुरीतियों से कैसे बचे ?
-कन्या भू्रणहत्या, कुपोषण, कन्या के लालन-पालन में भेदभाव, 18 वर्ष से कम आयु में विवाह, पर्दाप्रथा, दहेज के लिए प्रताड़ना, आदि बुराइयों/कमजोरियों को हटाने के लिए क्या-क्या मजबूत कदम उठाए जाएं।
4) बहन के अधिकारों की रक्षा कैसे हो ?
पारिवारिक-जन्मसिद्ध एवं कानूनी, सांविधानिक अधिकारों की रक्षा करने में भाई के सहयोग की भूमिका क्या हो ?
5) राष्ट्रनिर्माण में बहन की भूमिका कैसे दृढ़ हो ?
राष्ट्रीय, राजनीतिक निजी क्षेत्र एवं शासकीय सेवाओं में रूचि एवं प्रतिभा के अनुकूल समान अवसर की उपलब्धता कैसे सुनिश्चित हो।
इस प्रश्नों का समाधान करने के लिए उपस्थित बुद्धिजीवी, अधिवक्ता एवं छात्र-छात्राओं ने गहन विचार मंथन किया। इसके बाद कुछ बिन्दुओं को निष्कर्ष के रूप में प्रस्तुत किया गया।
-कानून ने महिलाअें को अधिकार दे दिए हैं लेकिन उसे वास्तव में अधिकार नहीं मिलते हैं।
-हर पिता अपनी लड़की को स्वाबलंबी बनाने में सक्षम नहीं है या उसकी प्राथमिकता में पुत्र ऊपर है।
-यह भावना भी नहीं है कि पुत्री को स्वाबलंबी बना कर ही उसका विवाह किया जाए।
-पुत्र के समान ही पुत्री को माता-पिता की संपत्ति में सारे अधिकार प्रदान किए जाएं, यह भी हम में से अधिकांश को गवारा नहीं होता है।
-पिता के कारोबार में अवसर एवं विवाहोपरांत पति के साथ पिता के घर में ही रहने की स्वतंत्रता बालिकाओं को मिलनी चाहिए।
-ससुराल में कोई कष्ट होने पर उसे वापस मायके में अकेले या पति के साथ सम्मान पूर्वक रहने के लिए स्थान मिलना चाहिए।
-पति या ससुराल से परेशान होने पर युवती द्वारा उनके बहिष्कार पर सभी का समर्थन और सहयोग मिलना चाहिए।
-चरित्र को बनाये रखने के लिए नारी और पुरूष की बराबर जिम्मेदारी होनी चाहिए।
-मातापिता द्वारा जन्म से लेकर मृत्यु तक बालिका को शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयासरत होना चाहिए।
-नारियों के संबंध में बनाई गई धारणाएं एवं वर्जनाएं, जिनमें कोई तथ्य नहीं है, उन्हें त्याग देना चाहिए।
-हर लड़के के पिता को यह तय करना होगा कि वह दहेज नहीं मांगेगा।
-हर माता-पिता को यह तय करना होगा कि विवाह की रस्म के आडंबरों और चमक-दमक और फालतू दिखावों को त्यागना होगा।
-विवाह तो एक धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान है। इसकी शुचिता पर ही दांपत्य जीवन के रस-सौंदर्य का पौधा उगता है, न कि कुरीतियां, आडंबर, अंधविश्वास, लालच और दिखावे की होड़ से।
अधिवक्ता प्रवीन चतुर्वेदी, डा. लतिका सिंह, संजय शर्मा, डा. रजनी यादव, टी. एन. सिंह उत्तम सिंह उत्तम, विनय कुमार, नवीन मिश्रा, प्रणव शरण, अतुल शर्मा ने भी चर्चा में भाग लिया। सभी ने एक स्वर से नारी सशक्तीकरण की दिशा में प्रयास करने का संकल्प लिया और कहा कि सर्वप्रथम इसे अपने ही घर आरंभ करेंगे।
संवाद में गर्मजोशी के साथ अपने विचार रखता हुए जेएस कालेज का एक छात्र
संवाद में समूह छायांकन के समय उपस्थित आयोजन के प्रमुख लोग।
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