बालिका&महिला पाठशाला & एक चुनौती
मदीना छोटी&छोटी लकडियों को बीनकर घर लाती थी। माँ उन लकड़ियों की आंच पर रोज का खाना बनाती थी। लगभग 2 से 3 घण्टें तक बीनी गई लकड़ियों से बना खाना मदीना के परिवार को एक अलग मिठास देता था] पर मदीना के जीवन में एक कडवाहट भी थी। उसका बचपन इन लकड़ियों के कांटों में ही खो गया था। किताब पर लिखे हुए अक्षर उसके लिए काली स्याही से ज्यादा कुछ नहीं थे। बचपन में मदीना स्कूल गई तो उसका मन नहीं लगा। घरवालों ने भी कभी पढाई के लिए उसपर जोर नहीं दिया और आज जब उसे पढाई का महत्व समझ में आया] तो वह कहां पढ़े] कैसे पढे़ जैसे प्रश्न उसके सामने हैं। उम्र अधिक होने के कारण अब वह स्कूल भी नहीं जा सकती है।
यह केवल एक मदीना की कहानी नहीं है। हमारे मध्य अंसख्य ‘मदीना’ आज निरक्षर हैं] पढ़ना चाहती हैं] पर उचित अवसर न होने के कारण वह पढ़ नहीं पाती हैं।
ऐसे एक गाव (नगला डेरा) के विषय में ग्राम प्रधान भानेश जी से शब्दम् टीम को पता चला। शब्दम् टीम ने नगला डेरा गांव का सर्वे किया] सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार-
- नगला डेरा गांव की आर्थिक स्थिति- मुस्लिम बाहुल्य ग्राम नगला डेरा में अधिकांश लोग दिहाड़ी पर कार्य करने वाले मजदूर हैं। यद्यपि गांव के लोग मजदूरी कर अच्छा धन कमा लेते हैं पर कुछ बुरी लत के कारण (शराब] सिगरेट तम्बाकू और जुआ), अधिकांश लोगों की अर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। गांव में ज्यादातर लोगों के मकान कच्चे बने हैं। आर्थिक स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नगला डेरा गांव के अधिकांश लोग प्रतिदिन खाना बनाने से पूर्व दोनों समय का राशन खरीदते हैं।
- नगला डेरा गांव की सामाजिक स्थिति- लगभग 700 लोगों की जनसंख्या वाले ग्राम नगला डेरा में 250 महिलाएं हैं। गांव के अधिकांश महिला पुरूष, गुटखा या पान लगभग हर समय मुह में रखते हैं। पुरुष बीड़ी] सिगरेट] शराब जैसी बुरी लत के शिकार हैं। सामाजिक तौर पर गांव के लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, किसी प्रकार की विपत्ति या आपात् स्थिति का सामना वह मिलजुलकर कर करते हैं। गांव में बाहर से आए हुए किसी भी व्यक्ति के साथ गांव के लोग अच्छे तरीके से पेश आते हैं।
- नगला डेरा गांव में शिक्षा की स्थिति- 20 आयु वर्ष से ऊपर के महिला पुरुष में शिक्षा का स्तर शून्य के करीब है। ग्राम निवासी ना तो शिक्षा के महत्व को समझते हैं और ना ही समझना चाहते हैं। बावजूद इसके ग्राम निवासी अपने कार्य क्षेत्र में आने वाले हिसाब-किताब को आसानी से लगा लेते हैं। इस संदर्भ में ग्राम के ही एक बुजुर्ग व्यक्ति कमरुद्धीन का कहना है कि मैं कभी स्कूल नहीं गया] पर पूरा हिसाब किताब बिना लिखे आसानी से लगा सकता हूँ।
उपरोक्त सर्वे के निष्कर्षों के पश्चात् शब्दम् संस्था ने 1 मई 2015 को ग्राम नगला डेरा में बालिका-महिला पाठशाला खोलने का निर्णय लिया। बालिका महिला पाठशाला प्रारम्भ करते समय गांव के लोग बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं थे] पर संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा समय-समय पर ग्राम प्रधान भानेश जी को साथ लेकर गांव के लोगों से बात की गई। उन्हें साक्षर होने का महत्व बताया। वर्तमान में भी स्थिति बहुत उत्साहजनक नहीं है] परन्तु जो आठ-दस महिलाएं लगातार बालिका-महिला पाठशाला में आ रही हैं] आज वे कई सरकारी कागजों पर अगूंठे लगाने की जगह बड़े गर्व से अपना नाम लिखती हैं।
नगला डेरा गांव से उत्साहित होते हुए करीब 5 किलोमीटर दूर नगला चांट गाव में भी शब्दम् ने बालिका-महिला पाठशाला प्रारम्भ की और महिलाओं को साक्षर बनाने की दिशा में एक कदम और बढ़ाया।
फोटो परिचय-
पाठशाला में उपस्थित बालिकाएँ।
पाठशाला में उपस्थित महिलाएँ।
प्रशिक्षण देती शिक्षिका।
पढ़ाई की शुरुआत करतीं महिलाएँ व बालिकाएँ।
प्रशिक्षण देती बालिकाएँ।