''भाभी ने चिट्ठी भेजी है प्यारे-प्यारे देवर जी''
उपरोक्त भोजपुरी कविता की मार्मिक पंक्तियाँ, जब सुप्रसिध्द कवि श्री कैलाश गौतम ने, 6 अगस्त, 2005 को, हिन्द परिसर स्थित कल्पतरु में आयोजित, आंचलिक काव्य गोष्ठी में पढीं तो सहसा एक बार पूर्वांचल का घरेलू ग्रामीण परिवेश जीवन्त हो गया।
आंचलिक काव्य गोष्ठी का प्रथम भाव पुष्प डॉ. राधा पाण्डेय ने अपनी अवधी भाषा की सरस्वती वन्दना से प्रस्तुत किया - ''..... जननी सँभार लाज मोहि अब वर दे.....'' फिर पढ़ा '..... खेतवन-खेतवन झूमे पसरिया, अमिया के डरिया पे बोले कोयलिया......'
ब्रजगीतों की प्रस्तुति की डॉ. रागिनी चतुर्वेदी ने। उनके ब्रजभाव में रचे-बसे दोहों ने 'धन्य-धन्य ब्रजभूमि ये, धन्य गोवर्धन धाम, जहाँ प्रेम की वाटिका सुषमा सहित ललाम' ने श्रोताओं को रस विभोर कर दिया।
कवि कैलाश गौतम की भोजपुरी काव्य रचनाओं ने इस गोष्ठी को सार्थकता प्रदान की। उनके गीत '..... पप्पू की दुल्हन की चर्चा गाँव के घर-घर में.....' ''...भाभी ने चिट्ठी भेजी है....'' ''जब देखो तब बड़की भौजी हँसती रहती है'' आदि ने श्रोताओं को आंचलिकता में डुबो दिया। श्रोताओं की माँग पर, कचहरी से आम जनता कैसे त्रस्त है, उसका चित्रण करते हुए अपनी रचना '....मेरे बेटे कचहरी न जाना....' पढ़ी। अपने काव्य पाठ का समापन, गंगा की पीड़ा व्यक्त कर रही रचना '..गंगा की बात क्या करूँ गंगा उदास है......' से किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे कवि रामेन्द्रमोहन त्रिपाठी ने लोकभाषा कन्नौजी में अपनी कविता '....गोरे-गोरे बछड़ा मोतियन झूल, झूलिया में टंग रहे चंदिया के फूल...' तथा अन्य लोकप्रिय रचनाओं का पाठ किया।
इस अवसर पर अपने प्रारम्भिक वक्तव्य में, 'शब्दम्' अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि ''यह कैसी विडम्बना है कि आज फिल्म देखने के लिए लोगों के पास समय है पर साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में जाने का समय नहीं है। समाज, राजनीति के लिए अच्छे साहित्य की आवश्यकता है, जो जन साधारण के अन्दर चेतना तथा अच्छे संस्कार पैदा करें तथा जनता की ओर से यह माँग होनी चाहिए कि मीडिया संस्कार युक्त साहित्य का प्रदर्शन करे।'' इसके लिए उन्होंने आंचलिक बोलियों में लिखे उच्च साहित्य की चर्चा भी की।
-: बड़की भौजी :-
जब देखो तब बड़की भौजी हँसती रहती है,
हँसती रहती है कामों में फँसती रहती है।
डोरा देह कटोरा ऑंखें जिधर निकलती है,
बड़की भौजी की ही घंटों चर्चा चलती है।
चौका-चूल्हा, खेत-क्यारी, सानी-पानी में,
आगे-आगे रहती है कल की अगवानी में।
पीढ़ा देती, पानी देती, थाली देती है,
निकल गई आगे से बिल्ली गाली देती है।
भईया बदल गये पर भौजी बदली नहीं कभी,
सास के आगे उल्टे पल्ला निकली नहीं कभी।
ऑंगन की तुलसी को भौजी दूब चढ़ाती है,
घर में कोई सौत न आये यही मनाती है।
भैया की बातों में भौजी इतना भूल गयी,
दाल परोसकर बैठी, रोटी देना भूल गयी।
- श्री कैलाश गौतम
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