तुम्हारे लि, मैं किसी भी हद तक जा सकती थी'

द्वितीय वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर हिन्द परिसर में कहानी की रंगमंचीय प्रस्तुति के अन्तर्गत विष्व प्रसिद्ध जर्मन लेखक ‘स्टीफन ज्विग' की कहानी का हिन्दी रूपान्तर ‘एक अनजान औरत का खत' प्रस्तुत किया गया । जिसे प्रसिद्ध नाट्‌यकर्मी सुश्री असीमा भट्‌ट ने प्रस्तुत किया।

सुश्री भट्‌ट ने कहानी को रेखांकित करते हुए अपने एकल अभिनय से कहानी को मंच पर जीवंत किया। कहानी में एक 13 वर्ष की बालिका एक बुजुर्ग लेखक के प्रेम में बंध जाती है। बालिका अपने प्रेमी लेखक के लिए एक—एक पल सदियों की तरह गुजारती है। 13 वर्षीय बालिका के हाव—भाव असीमा भट्‌ट ने प्रभावपूर्ण ंग से प्रकट किये। एक किषोरी की भावनाएं जब प्रेमी द्वारा आहत होती हैं तब उसकी छटपटाहट और इसके बावजूद भी प्रेमी के लिए सर्वस्व अर्पण कर देने की भावपूर्ण प्रस्तुति ने दर्षकों को मंत्र मुग्ध कर दिया। प्रेमी की निषानी को अपने पेट में पालने के बाद अपने बच्चे में अपने प्रेमी की सूरत का अक्स देखने वाली नायिका अज्ञात यौवना है। नाटक की कहानी के अनुरूप असीमा के स्वर और भाव—भंगिमाएं दृष्टिगोचर होती रही। लाचार प्रेमिका के बच्चे ने जब बुखार से दम तोड़ दिया तब नायिका ने अपने प्रेमी को पत्र लिखा। ‘‘बच्चे की खातिर खुद को बेच दिया तुम्हें तुम्हारे जन्मदिन पर सफेद गुलाब भेजे, लेकिन तुमने कभी ये नहीं पूछा कौन भेजता है ये गुलाब..... 11 साल तक चुप रहने के बाद आज तुम्हारी बेवफाई पर एक अनजान औरत खत लिख रही है।' लेकिन प्रेमी की बेवफाई से नायिका की भावनाएं इस तरह तार—तार हो जाती हैं कि वह पत्र लिखने के बाद उसे जलाकर खाक करते हुए कहती है ‘तुम्हारी तरह तुम्हारा बेटा भी मुझे छोड़कर चला गया। आखिर था तो तुम्हारा बेटा ही न।'

नाटक के दौरान दर्षक सांस रोके, असीमा भट्‌ट की कला के आत्मीय साक्षी बने रहे।

अपने प्रेमी का स्मरण करती हुई ‘अनजान औरत' के मार्मिक अभिनय में असीमा भट्‌ट स्टीफन ज्विग की नायिका के रूप में असीमा भट्‌ट की भावपूर्ण प्रस्तुति
स्तब्ध हो देख रहे दर्षक रवीन्द्र कालिया, ममता कालिया, ढइत ध्झ किरण बजाज, गीतिका बजाज, सोम ठाकुर, रामऔतार रमन एवं अन्य

 

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