ग्राम्य काव्य समारोह

कार्यक्रम विषय : ग्राम्य काव्य समारोह

दिनांक : 14 जून, 2009

समय : प्रातः 10:00 बजे से 3:30 बजे तक

स्थान : प्यारेलाल- जीवाराम की ठार (बगिया) बनीपुर, शिकोहाबाद

संयोजन : शब्दम्, शिकोहाबाद

आमंत्रित कवि : उदय प्रताप सिंह, श्री विश्वनाथ द्विवेदी, श्री राजकुमार ‘रंजन’, श्री पदम अलबेला, श्री बलराम ‘सरस’, श्री जयेन्द्र पाण्डेय ‘लल्ला’, डाॅ ध्रुवेन्द्र भदौरिया।

यह गांवों की उर्वर भूमि क्यों न हिन्दी भाषा और साहित्य के लालन-पालन का स्थल बने, शब्दम ने इस सोच को प्रमुखता से अपनी क्रियान्वयन सूची में शामिल किया है। ग्राम्य कवि सम्मेलन के माध्यम से समय-समय पर संस्था द्वारा गांवों की अमराइयों के बीच कविता का बिगुल फूंकने का काम किया जाता है। इस बार गांव बनीपुर की माटी गवाह बनी। जेठ की दोपहरी में हरे पेड़ों की छांह के बीच कविता ने किलोल की तो आसपास का जनमानस अपने जरूरी कामों को छोड उस तरफ दौड़ चला। यह कवि सम्मेलन खासतौर से पर्यावरण, दहेज विरोध, नारी उत्थान, पाखंड समाप्ति जैसे कुछ विषयों को केंद्रित करते हुए आयोजित किया गया था।

गंाव में कविता कहने का अपना अलग ही अनुभव है। सुनाने वालों के लिये भी और सुनने वालों के लिये भी। इस अनुभव के अंतर्गत मासूम श्रोताओं की भंगिमाएं या फिर कवि को मिला एक अनोखा माहौल दोनों की तरफ से एक अलग तरह के काव्यरस को निःसृत करता है।

इस समारोह में शब्दम् के चिरपरिचित साथी-सहयोगियों के अलावा बाहर के कवि एवं गांवों के तमाम लोग अमराई की छांह तले एक दूसरे के मिलन के साक्षी बने। वरिष्ठ कवि उदयप्रताप सिंह ने तो मंच से यहां तक कहा कि ऐसे कार्यक्रमों पर लाखों के कविसम्मेलन को न्यौछावर कर दिया जाये तो अधिक नहीं। उन्होंने शब्दम के इस समारोह में गांव वालों के सहयोग और व्यवस्थाओं को गांव की नैसर्गिकता से जोड़ते हुए पर्यावरण मित्र संस्था का स्मरण भी किया। साथ ही पर्यावरण की आवश्यकताओं और उसमें गांव की माटी के महती योगदान को भी रेखांकित किया। मंज़र उल वासै ने ‘षब्दम््’ और श्रीमती किरण बजाज का परिचय दिया। डा. रजनी यादव ने पर्यावरण मित्र का परिचय दिया।

कविता के नाम से ही उत्सुक हो रहे श्रोताओं को गीतकार राजकुमार रंजन के गीत, ‘‘एक नया युद्ध करें पर्यावरण शुद्ध करें’’ ने पर्यावरण मित्र के आह्वान में शामिल करने का काम किया। व्यंग्यकार जयेंद्र पांडे ‘लल्ला’ ने हंसाते हुए यथार्थ के धरातल तक ले जाने का काम किया। ओज कवि बलराम सरस की कविता ने बुजर्गों के प्रति प्रेम और आदर की भावना जगाने का काम किया। ‘उनकी नजरिया मेरे गांव को लगी’, रचना भी भावोद्दीपक रही। कवि और शब्दम् सलाहकार समिति के युवा सदस्य मुकेश मणिकांन्चन ने गाँव की माटी की ओजस्विता को प्रणाम करते हुए नैतिकता और मर्यादा के क्षरण पर काव्यपाठ किया।

ओजस्वी कवि विश्वनाथ द्विवेदी ने शब्दम के अभियान को सराहते हुए अपनी कविता के माध्यम से उसके स्वर में स्वर मिलाया, ‘‘हिन्दी ने सब बोलियों-भाषाओं का वन्दन किया, हिन्दी ने हर वर्ग के वीरों का अभिनन्दन किया’’। हास्य कवि पदम् अलबेला ने नये पुराने फिल्मी गानों की धुन पर आधारित कविताएं सुनाकर श्रोताओं को हास्य मंें गोते लगवाये। समारोह पूर्णाहुति की उदयप्रताप सिंह ने। उन्होंने अपने काव्य पाठ में ‘‘ एक नव वाटिका में एक था कपोत युग्म कोई परवाह न थी, चाह न थी दुविधा, असुविधा में विचारों में सोचता हूँं थोड़ी देर दुनिया से दूर पंछी होना मेरे भी अधिकार में’’। संचालन करते हुए डा. धु्रवेंद्र भदौरिया ने भी काव्यपाठ किया। समारोह में कवियों ने तो गांव वालों को अपनी वाणी के जादू में बांधा ही, गांव वालों ने भी अपने अपने स्वागत से सभी को मोह लिया।

काव्य पाठ करते श्री मुकेश उपाध्याय ‘मणिकान्चन’

ग्रामीणों के बीच अपनी रचना प्रस्तुत करते जयेन्द्र पाण्डेय ‘लल्ला’

काव्यरस की फुहार के साथ गणमान्य श्रोतागण।

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