कार्यक्रम - ग्यारहवां ग्रामीण कवि सम्मेलन
स्थान- सर्वोदय स्थली (ब्रह्मांडेश्वर) ग्राम सभा जलालपुर
दिनांक- 18 जून 2017
अध्यक्षता- श्री उदयप्रताप सिंह
संचालन- डॉ. ध्रुवेन्द्र भदौरिया
आमंत्रित कविगण-कुमार मनोज, अजय ‘अटल’, राजीव ‘राज, अरविन्द तिवारी
-------------------------‘सो गया नसीब, माॅ का गया सिन्दूर और नंगे
नौनिहालों की लगूटियां चली गईं, भाई की पढाई गई, बाप की दवाई गई, आपके के लिए तो एक आदमी मरा हुजूर, मेरे घर की तो रोटियाँ चली गईं। मंचीय काव्यपाठ का प्रारम्भ करते हुए ओजस्वी कवि श्री कुमार मनोज ने सरहद पर शहीद होने वाले जवानों के परिवार की वेदना को अपनी कविता के माध्यम से कुछ इस तरह व्यक्त किया।
कवि श्री अजय ‘अटल’ ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा -
‘हलधर गंगा की धवल धार, संस्कृति संरक्षक धर्म द्वार, भारत के जनमन में बसते, तुम बनकर के पावन विचार। तुम से ही तो सम्भव अब तक पूरी दुनियां की उदरपूर्ति, खुद मरकर जीवन देते हो तुमसे बढ़कर है गौ उदार, हर गंगा की धवल धार.................।
इसी क्रम में काव्य पाठ करते श्री राजीव ‘राज’ ने अपने काव्यपाठ की प्रस्तुति में कहा ‘बेटियां ही घर बनाती हैं, दरो दीवार को...................ने लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
श्री अरविन्द तिवारी ने अपने हास्य व्यंग्य से सभी उपस्थित लोगों को खूब हँसाया ।
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह ने ग्रामीणों के बीच कविता के संस्कार पैदा करने के लिए शब्दम् द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए संस्था अध्यक्ष किरण बजाज का बहुत धन्यवाद किया एंव आभार प्रकट किया। उन्होंने अपने काव्यपाठ में कहा ‘ चार दिन की जिन्दगी, जिये तो क्या जिये। बात तो तब है जब मर जाए औरों के लिए............. अभी समय है सुधार कर लो ये मनमानी नहीं चलेगी.............ने लोगों को तालियां बजाने पर विवश कर दिया।
कार्यक्रम में पर्यावरण मित्र द्वारा जैविक उत्पादों की प्रदर्शनी को भी लगाया गया।
कार्यक्रम संचालन डॉ. धु्रवेन्द्र भदौरिया ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रजनी यादव ने दिया।
कार्यक्रम में लगभग 700 ग्रामीणजन एंव काव्यप्रेमी श्रोता उपस्थित थे।
फोटो परिचय-
काव्य पाठ करता छात्र।
काव्य पाठ करते कवि ‘कुमार’ मनोज।
काव्य पाठ करते अजय ‘अटल’।
काव्य पाठ करते राजीव ‘राज’।
काव्य पाठ का अनंद लेते श्रोतागण।
काव्य पाठ का अनंद लेते श्रोतागण।
काव्य पाठ का अनंद लेते श्रोतागण।
समूह छायांकन।
कवि, कुमार मनोज परिचय
मूलनाम - मनोज कुमार
पिताश्री- श्री विजय सिंह
माताश्री -श्रीमती रामलली
जन्म - 1 अक्टूवर 1982
शिक्षा -बी एस सी, एम ए , बी एड
सम्मान-महामहिम राष्ट्रपति अब्दुल कलाम द्वारा (मुगल गार्डेन दिल्ली) विभिन्न टी0वी0 चैनलों एवं आकाशवाणी पर काव्यपाठ अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कार,देश के विभिन्न प्रान्तों में संयोजन, संचालन एवं काव्यपाठ
सम्प्रति - सहायक अध्यापक, इटावा
मूलपता - अहिकारीपुर, चैबिया, इटावा, उ0प्र0
वर्तमान पता - ’विजयश्री’ नयी मण्डी के पीछे, श्यामनगर इटावा
मोबाइल - 9410058570
कहीं भी, मुस्कुराने के बहाने ढूँढ लेते हैं जो मेहनतकश हैं मिट्टी में खजाने ढूँढ लेते हैं
नये जो यार थे सबने किनारा कर लिया दुख में चलो कुछ दोस्त ऐसे में पुराने ढूँढ लेते हैं
परिन्दे अपने बच्चों की हिफाजत के लिए अक्सर अँधेरे मंे भी अपने आशियाने ढूँढ लेते हैं
भटकते हैं वही जिनका भरोसा ही नहीं खुद पे जे काबिल लोग हैं वो सौ ठिकाने ढूँढ लेते हैं
सलीका सीखना है जिन्दगी का उन परिन्दों से जो कूड़े में पड़े गेंहूँ के दाने ढूँढ लेते हैं
कवि डॉ. अजय अटल का परिचय
नाम- - अजय अटल
मोबाइल- 9027953540
बिलराम टाउन कासगंज यू पी
जन्म - 5जून 1979
व्यवसाय -प्राध्यापक गेंदा देवी डिग्री कॉलेज बरबारा कासगंज
प्रकाशनाधीन-श्री राम का दुर्गा आराधन तथा राधा कृष्ण की होली
कविता
नयन में सागर है वरना अश्रु नमकीन नहीं होते कण्ठ में करुणा है वरना गीत गमगीन नहीं होते
सुना है मन के हारे हार, सुना है मन के जीते जीत खंडहर लगे इन्द्र का द्वार मिले जब मन को मन का मीत कभी मधुमास जगाता त्रास, कभी पतझर लगता मधुमास दृष्टि रंगीली है वरना दृश्य रंगीन नहीँ होते .............
ढूँढता फिरता है इन्सान, समस्याओं का सदा निदान उचित अनुचित का उसको ज्ञान, किंतु बनता फिरभी अंजान जिंदगी होती अगर अबाध कौन करता बोलो अपराध पेट यदि होता पीठ समान पाप संगीन नहीँ होते ...............
राम को विश्व मानता मगर राम का देश न माने राम जोगिया घर का जोगी और सिर्रिया सिद्ध पराये गाम राम यदि लेते मन में ठान विश्व होता फिर हिंदुस्तान धरा पर रूस, पाक, जापान, जर्मनी, चीन नहीं होते .......................
कवि डॉ. राजीव ‘राज’ का परिचय
नाम- डॉ. राजीव राज
जन्मतिथि -8 दिसम्बर 1975
शिक्षा -एम एस सी (रसायन शास्त्र/पी-एच डी ,
बी एड, एम ए (हिन्दी साहित्य),
एम ए (संस्कृति साहित्य)
एम ए (भूगोल), साहित्य रत्न/प्रयाग)
सम्मान- श्री के एल गर्ग सर्वश्रेष्ठ शिक्षक सम्मान-2014
(मा मुख्यमंत्री उ प्र शासन द्वारा प्रदत्त)
शिवाजी दर्पण साहित्य सम्मान, ग्वालियर, म प्र
ईश्वरी देवी एवं वीरेन्द्र सिंह स्मृति सम्मान
(मा लो नि मंत्री, उ प्र शासन द्वारा प्रदत्त)
श्री अग्रवाल सभा चैन्नई, तमिलनाडु एवं
श्री खेड़ापति हनुमान सेवा समिति धार, म प्र सहित
अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मान
सम्पादन-श्री कृष्ण उद्घोष (त्रैमासिक पत्रिका)
श्री कृष्ण करमायण (प्रबन्ध काव्य)
सम्प्रति-शिक्षण एवं स्वतन्त्र लेखन
सम्पर्क-239, ’’प्रेम बिहार’’, विजय नगर इटावा - 206001 (उ प्र)
गीत
पतंगें उड़तीं हैं चहुँओर पतंगें। लगतीं हैं चितचोर पतंगें। सबको खुश करने की खातिर, नाचें बन के मोर पतंगें। उड़ें गगन में मगर पतंगों सा है कौन अभागा। उतनी ही परवाज मिली जितना चरखे में धागा।।
अम्बर का विस्तार नयन में स्वप्न सँजोता है। दूर क्षितिज तक उड़ पाने की ख्वाहिश बोता है। सपने तो सपने हैं अपने कभी नहीं होते, बन्धन चाहे जैसा भी हो बन्धन होता है। ठुमक रहीं कठपुतली बनकर,घूम रही हैं तकली बनकर। क़िस्मत की थापों पर बेबस, बजती आयीं ढपली बनकर। जगीं युगों की सुबहें लेकिन इनका भाग्य न जागा। उतनी ही परवाज मिली जितना चरखे में धागा।।
पहले पहल पिता के हाथों में जी भर खेली। उम्र चढ़ी प्रिय के इंगन पर डोली अलबेली। रंग ढला जर्जर तनए कन्ने जब कमजोर हुए, चरखा-डोर हाथ में अगली पीढ़ी ने ले ली। यही निरन्तर क्रम जारी है। यहाँ तरक्की भी हारी है। औरों के हाथों में रहना, ही पतंग की लाचारी है। नुची लुटेरों से जिसने चरखे का बन्धन त्यागा। उड़ें गगन में मगर पतंगों सा है कौन अभागा।। देख थिरकती देह पतंगों की अम्बरतल पर। ताली दे हँसती जो दुनियाँ खुश होती जमकर। वही लगाकर दाँव, फँसाकर पेच, काट देती, ऊपर उठती हुयी पतंगें क्यों लगतीं नश्तर। क्या उनको अधिकार नहीं है। क्या उनका संसार नहीं है। खुद से ऊपर उनका होना,बोलो क्यों स्वीकार नहीं है। कब तक शबनम पर जाएगा अहम का शोला दागा। उड़ें गगन में मगर पतंगों सा है कौन अभागा।।
![]() |
![]() |