कुर्सी तेरे भाग्य में दो कौड़ी के लोग
उ.प्र. हिन्दी संस्थान के सहयोग से आयोजित 'शब्दम्' का
साहित्यिक दोहा सम्मेलन सम्पन्न
कविता के वाह्य रूप को गढ़ने के लिए तरह-तरह के छंदों का प्रयोग होता आया है। तमाम छंदों के बीच दोहा छंद की अपनी अलग तरह की विशेषताएं हैं। इस छंद की संक्षिप्तता, गेयता और स्मरणीयता जैसी खूबियों को रेखांकित करने के उद्देष्य से यहाँ हिन्द लैम्प्स परिसर में 'शब्दम्' की ओर से दोहाप्रधान कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें हिन्दी के कई शीर्षस्थ कवियों ने इस दौर की विसंगतियों का खाका खींचा। राजनीति और भ्रष्टाचार को बेनकाब करने का प्रयास किया तो फागुन की सतरंगी छटा भी बिखेरी।
'शब्दम्' की अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज के अतिथि सत्कार एवं हरिराम द्विवेदी की संस्कृतनिष्ठ सरस्वती वंदना के बाद युवा पीढ़ी के गंभीर कवि अषोक अंजुम ने राजनीति पर इस तरह व्यंग्य कसा -
ना जाने किस जन्म का, भोग रही है भोग। कुर्सी तेरे भाग्य में दो कौड़ी के लोग॥
ग़ज़ल ''...तौबा-तौबा राम दुहाई अच्छा नहीं हुआ, तुमने छत पर ली अंगड़ाई अच्छा नहीं हुआ'' के द्वारा अषोक ने फागुनी माहौल की वाहवाही लूटी। हास्य व्यंग्य के जाने-माने कवि सूर्य कुमार पाण्डेय ने कहा - ''...नेता, वक्ता, रोंगटे और गधे के कान, खड़े हुए होते तभी होती इनकी पहिचान....'' ''राजनीति से अलविदा होते मूल्य तमाम, निर्वसनों के मुल्क में धोबी का क्या काम...'' हास्य माला के इन दोहा-मुक्तकों ने जहाँ ठहाके लगाने को विवष किया वहीं सोचने के लिए भी श्रोताओं को मजबूर कर दिया।
साहित्य भूषण की उपाधि वाले हरिराम द्विवेदी ने आध्यात्मकेन्द्रित रचनापाठ करते हुए कहा - सुख के साथी हैं बहुत, दुख का साथी कौन जिसकी ओर निहारता, वही दीखता मौन।
वरिष्ठ साहित्यकार जगत प्रकाश चतुर्वेदी ने निजी अनुभवों की पीड़ा को यूं उद्गार दिया - ''...महानगर में वास है पर मन में वनवास, बाहर-बाहर जगत है भीतर छिपा प्रकाश...'' कार्यक्रम का संचालन कर रहे सुप्रसिद्ध कवि कैलाश गौतम ने अपने दोहों से विविध रंग बिखेरे, ''...गोरी धूप कछार की, हम सरसों के फूल, जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल...'' ''...अच्छा है संसार में किस्मत का ये खेल, कातिल को कुर्सी मिले, फरियादी को जेल...'' ''....सब कुछ उल्टा हो गया आज कार्य-व्यापार, थाने में जन्माष्टमी, आश्रम में हथियार...'' ''...सुनता हूँ जिस दिन मिला, तीन लाख अनुदान। नयी जीप में बैठ कर लौटे हैं परधान...'' अलग-अलग सामाजिक स्थितियों को चित्रित करते इन दोहों के बीच लोग देर तक आनन्द लेते रहे।
लोगों के अनुरोध पर श्रीमती किरण बजाज ने अपनी पसंदीदा कविता 'करीब आ रहे हैं हम घाट के अपने'.... प्रस्तुत कर भावपूर्ण वातावरण उपस्थित किया। इससे पूर्व अपने सम्बोधन में उन्होंने शब्दम् के वार्षिक कार्यों का उल्लेख करते हुए शब्द साधना की निरन्तरता बनाये रखने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि साधन सम्पन्न लोग हिन्दी की सेवा में जुटें। भाषा और संस्कार की धरोहर को मनोयोग से सहेजने की जरूरत है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उद्योगपति और साहित्यकार बालकृष्ण गुप्त ने कहा कि ''वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला आदि तमाम विधाओं में काव्यकला सबसे सूक्ष्म है। उन्होंने कहा कि शब्दम् द्वारा इस श्रेष्ठ कला के विकास के
लिए काम किया जा रहा है। कल-कारखाने की दुनिया के बीच ये प्रयास काफी सुखद लगता है। आयोजन की सफलता के लिए उन्होंने शब्दम् परिवार सहित संस्था के सचिव डा0 सुबोध दुबे को विषेष बधाई दी। संस्था के सम्मानित सदस्य उमाषंकर शर्मा ने सभी का आभार प्रकट किया। कार्यक्रम को उ.प्र. हिन्दी संस्थान के सहयोग से आयोजित किया गया था।
दोहाकार सम्मेलन में आमन्त्रित कवियों द्वारा प्रस्तुत रचनाओं के कुछ अंश:-
श्री अशोक अंजुम द्वारा प्रस्तुत दोहे -
मधुमय बंधन बाँध कर, कल लौटी बारात।
हरी काँच की चूड़ियाँ, खनकीं सारी रात॥
अन्दर-अन्दर मोम था, ऊपर-ऊपर आग।
सदा पिताश्री से मिला, हमको यूँ अनुराग॥
प्राण-वायु देता सदा कुछ मित्रों का प्यार।
वरना जीवन की नदी, कैसे होगी पार?।
श्री सोम ठाकुर द्वारा प्रस्तुत दोहे :-
ये मदमाते रस-भरे, ऐन-बैन के सैन।
हुए बिहारी लाल के, दोहे तेरे नैन॥
देखे इस दरबार में, अजब-अनोखे खेल।
पूँछ हिले, कुर्सी मिले, होंठ हिले पर, जेल॥
कौन, कहाँ, कैसे कहे, भीगे मन की बात।
पलक-पलक की ओट में, भादों की बरसात॥
श्री कैलाश गौतम द्वारा प्रस्तुत दोहे :-
संविधान की धज्जियाँ, उड़ा रहा है कौन।
इस सवाल के सामने, सारी संसद मौन॥
बिके हुए हैं लोग ये, कैसे करें विरोध।
कभी आपने है सुना, हिज़ड़ा और निरोध॥
श्री सूर्यकुमार पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत दोहे:-
नेता-चूहा एक से, कहते सकल प्रबुद्ध।
बीच सदन बिल के लिए, दोनों करते युद्ध॥
क्या कहिए इस प्रेम को, जिसका ओर न छोर।
चाँद हमारी देखकर,, वे बन गए चकोर॥
बस का कंडक्टर बना, जब पार्टी-अध्यक्ष।
टिकट बाँटने की कला में था सबसे दक्ष॥
श्रीमती किरण बजाज द्वारा प्रस्तुत काव्य रचना 'बिटिया' :-
घर की उजयारी सबसे न्यारी।
प्यारी बिटिया सयानी बिटिया।
अखियाँ मटकाती मुस्काती जाती
किसी बात पर मुँह फुलाती
फिर हँसकर तुरन्त गले लग जाती
प्यारी बिटिया छोटी बिटिया
जब देखो तब ऊपर नीचे
बाहर भीतर बाग बगीचे
गिलहरी जैसे भागी जाती
चिड़िया जैसे उड़ती आती
हमारी बिटिया तुम्हारी बिटिया
छोटी बड़ी मझली बिटिया
घर-घर की शान है बिटिया
व्रत, तीज त्यौहार है बिटिया
सावन की बौछार है बिटिया
तेज धूप में छाँह है बिटिया
सम्बन्धों में मिशाल है बिटिया
दो घरों का प्रकाश है बिटिया
प्रेम का श्रृंगार है बिटिया
ममता का निर्वाह है बिटिया
सभ्यता का प्रवाह है बिटिया
अपनी ही पहचान है बिटिया
गृहस्थी का प्राण है बिटिया
हर घर में वरदान है बिटिया
घर की उजयारी सबसे न्यारी।
प्यारी बिटिया सयानी बिटिया।
श्री कैलाश गौतम को अपनी रचना 'बिटिया' प्रदान करतीं श्रीमती किरण बजाज।