शिक्षक दिवस
संस्कृत के वि़द्वान शिक्षकों का सम्मान
कार्यक्रम का विषयः - शिक्षक दिवस एवं ‘‘शिक्षक मूलतः चरित्र निर्माता है” विषय पर संगोष्ठी
दिनांक : 11 सितम्बर 2015
संयोजन: शब्दम्
स्थान- धानुका गेस्टहाउस, वृंदावन
आमंत्रित अतिथि: डॉ. अच्युतलाल भट्ट, डॉ. सच्चिदानंद द्विवेदी, श्री राजाराम मिश्र
शब्दम् द्वारा शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में ब्रजभूमि वृंदावन में विशिष्ट शिक्षक सम्मान समारोह मनाया गया समारोह के अंतर्गत ‘शिक्षक मूलतः चरित्र निर्माता है’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
साहित्य संगीत कला के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्था शब्दम् द्वारा प्रत्येक वर्ष की भांति आदर्श एवं समर्पित शिक्षकों का सम्मान किया गया। इस श्रृंखला में इस बर्ष संस्कृत के प्रकाण्ड़ विद्वान, शिक्षकों क्रमशः श्री राजाराम मिश्र, दण्ड़ी आश्रम वृदावन, डॉ. सच्चिदानन्द द्विवेदी धर्मसंग वि़द्यालय वृंदावन, डॉ. अच्युतलाल भट्ट को शाल, नारियल, बैजयन्ती माला, सम्मान पत्र एवं सम्मान राशि भेंट कर सम्मानित किया गया।
सम्मान समारोह में ‘शिक्षक मूलत; चरित्र निर्माता हैं’ विषय पर वक्तव्य देते हुए विद्वान पं. राजाराम मिश्र ने कहा कि ‘‘ शि़क्षकों का मौलिक चिंतन, चरित्र निर्माण के सम्बन्ध में कार्य करना। वैदिक परम्परा की शिक्षा व्यवस्था ही विश्व समाज की पोषिका तथा मानव का कल्याण करने वाली विद्या है। भौतिक युग में वैदिक शिक्षा ही मार्ग दिखाएगी। हमारा जो भी लक्ष्य है उसकी प्राप्ति में वेद मार्ग के अलावा कोई मार्ग कारगर नहीं। शिक्षक छात्र को अपने पुत्र के समान मानें । आज, शिक्षक पैसे के पीछे भागता है। शिक्षक का सम्मान वस्त्र, आभूषण धन से नहीं होता बल्कि उसके गुणों को ग्रहण करने से उनका सम्मान हो जाता है। छात्रों को प्रयत्नशील होना चाहिए।
इसी क्रम में विद्वान डॉ. अत्युतलाल भट्ट ने कहा ‘जो ज्ञान के लिए, समाज के लिए और मूल्यों के लिए समर्पित हो वही मूलतः शिक्षक है।’ समाज का कर्तव्य है कि वह विद्या और ज्ञान को महती चेतना के प्रति समर्पित करे। संस्था किसी विचार का प्रतीक होती है। वह मकान का ढांचा नहीं है।
शिक्षा का उद्देश्य जीवन को ज्ञानमय और आनन्दमय बनाना है। अध्यापक का मूल्य कर्तव्य शिष्य के जीवन को शिक्षा से जोड़ते हुए उसे ज्ञानमय और चरित्रवान बनाना है। विद्यार्थी अपने ज्ञान से यह जान सके कि सत्य और असत्य क्या है। और उसकी खोज स्वयं करे। अध्यापक का यह कर्तव्य है कि वह विद्यार्थियों में विश्लेषण करने की क्षमता उत्पन्न करे।’’
इस क्रम में संस्कृति के विद्वान सचिदान्नद द्विवेदी ने कहा कि ‘‘जब डॉ. राधाकृष्णनन शिक्षक का पद छोड़कर राष्ट्रपति हो गए, तब शिक्षक का सम्मान कहा हुआ, शिक्षक का सम्मान तो तब है जब एक व्यक्ति राष्ट्रपति का पद छोड़कर शिक्षक बन जाये।’’
इस अवसर पर शब्दम् अध्यक्ष किरण बजाज ने अपने संदेश में कहा गया कि ‘‘आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में पश्चिमी जगत ने जो महान उपलब्धियाँ प्राप्त कर ली हैं, उनका जवाब नहीं, लेकिन नैतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में भारत ने जो आदर्श और उदाहरण प्रस्तुत कर दिये थे, उनकी समता आज भी पश्चिम नहीं कर सका है।
इसका सारा श्रेय हमारी शिक्षा प्रणाली को था। प्राचीन भारत में एक और तक्षशिला, नालन्दा जैसे महान विश्वविद्यालय थे, अन्नामलाई जैसे शिक्षा संस्थान, तो दूसरी ओर भद्र ऋषियों के गुरूकुल थे। इनका संचालन सरकार द्वारा नहीं, आचार्यों द्वारा होता था। ‘आचार्य’ का अर्थ है - वह शिक्षक जिसका जीवन, जिसका ‘आचरण’ व्यवहार में उतारने योग्य हो। शिक्षक अपने आचरण से आचार्य बनता था।
पूरब और पश्चिम के शिक्षण का अन्तर यही है कि पश्चिम की प्रगति ने हमें दो महायुद्ध दिये और भारतीय शिक्षण ने वे सन्देश, जिनसे मनुष्य, मनुष्य बनता है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ ‘सत्यमेव जयते’ ‘विश्व का कल्याण’- यह सब भारतीय शिक्षा के आदर्श हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री उमाशंकर शर्मा ने कहा कि ‘‘शब्दम की ओर से शिक्षकों का सम्मान एवं इन विद्वानो द्वारा शिक्षक मूलत; चरित्र निर्माता है विषय पर अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत कर हमारा मागर्दर्शन किया है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. महेश आलोक, हिन्दी विभागाध्यक्ष नारायण महाविद्यालय, शिकोहाबाद ने किया। शिक्षक सम्मान समारोह में दण्ड़ी आश्रम, धर्मसंघ विद्यालयों के विद्यालयों के साथ-साथ विद्यालयों के छात्र एवं अध्यापकगण उपस्थित रहे।
फोटो परिचय-
सरस्वती जी के चित्र पर दीपप्रज्जवन करते सम्मानित शिक्षकगण।
सभागार में उपस्थित संस्कृत वि़द्यालय के छात्र एवं नगर के गणमान्य अतिथि।
डॉ. अच्युतलाल भट्ट का शाल पहनाकर सम्मान करते श्री उमाशंकार शर्मा।
श्री सचिदानन्द द्विवेदी को सम्मान पत्र भेंट करते श्री उमाशंकर शर्मां
वक्तव्य प्रस्तुत करते श्री सचिदानन्द द्विवेदी।
कार्यक्रम अध्यक्ष श्री उमाशंकर जी सम्मानित करते शिक्षकगण।
शब्दम् सलाहकार समिति के साथ समूह छायांकन।
सम्मानित शिक्षकों के साथ समूह छायांकन।
संस्कृत विद्यालय के छात्रों के साथ समूह छायांकन।
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