स्थापना दिवस सम्मान समारोह, विचार गोष्ठी ‘21वीं सदी में मुक्तिबोध की कविता’ एवं काव्य गोष्ठी
दिनांक- 17 नवम्बर 2017
सम्मान- प्रो. सदानन्द शाही
विचार गोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी में आमंत्रित- डॉ. राजेश मल्ल, श्री मदन कश्यप
अध्यक्षता- श्री पुन्नी सिंह
विशिष्ट अतिथि- श्री शेखर बजाज
स्थान- संस्कृति भवन, हिन्द लेम्प्स परिसर, शिकोहाबाद, उ0प्र0।
साहित्य-संगीत-कला को समर्पित संस्था शब्दम् ने अपने स्थापना दिवस सम्मान समारोह में प्रख्यात साहित्यकार प्रोफेसर सदानन्द शाही को सम्मानित किया। बजाज इलेक्ट्रीकल्स के प्रबन्ध निदेशक एवं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शेखर बजाज एवं शब्दम् सलाहकार मण्ड़ल के सदस्यों ने प्रो. सदानन्द शाही को अंगवस्त्र, सम्मान पत्र, वैजयन्ती माला देकर सम्मानित किया। डॉ. महेश आलोक ने परिचय देते हुए कहा कि सदानन्द शाही न केवल चर्चित कवि एवं आलोचक हैं बल्कि हिन्दी की एक महत्त्वपूर्ण बोली जो अब भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है, उसके विकास एवं संवर्द्धन के लिए भी विशेष रूप से सक्रिय रहे हैं। शब्दम् ने उन्हें भोजपुरी भाषा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए सम्मानित किया।
प्रो. सदानन्द शाही ने अपने भोजपुरी साहित्य के संदर्भ में वक्तव्य देते हुआ कहा कि भारत एक बहुभाषी देश है इसकी बहुभाषिकता इसकी सम्पदा है जैसे हजारों नदियां यहाँ धरती को सरसब्ज करती हैं वैसे ही हजारों भाषाएँ हमारे मनुष्य होने का अर्थ देती हैं। भाषाओं की इस सम्पदा को सुरक्षित रखना और उसे भावी पीढ़ी को हस्तान्तरित करना हमारा दायित्व है।
इसके साथ ही नई कविता के सबसे चर्चित एवं महत्वपूर्ण कवि ‘मुक्तिबोध’ के जन्मशती के अवसर पर ‘21वीं सदी में मुक्तिबोध की कविता’ विषय पर एक विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। डॉ. महेश आलोक ने कहा कि मुक्तिबोध 20वीं सदी के अकेले ऐसे रचनाकार हैं जिनसे अनेक रचनाकार प्रेरणा ग्रहण करते रहे हैं। मुक्तिबोध का गहरा प्रभाव समकालीन हिन्दी कविता पर पड़ा है।
मदन कश्यप ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘मुक्तिबोध’ अग्रगामी चेतना के कवि थे। उन्होंने अपने समय के यथार्थ को केवल सतह पर नहीं देखा था बल्कि उसकी आंतरिक गतिशीलता को रेखांकित किया था इसलिए उनकी कविताएँ समय से आगे जाती हैं।
डॉ. राजेश मल्ल ने कहा कि मुक्तिबोध ऐसे वैचारिक और राजनीतिक कवि हैं जो आज के समय और समाज को समझने के लिए जरूरी दृष्टि मुहैया कराते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात कथाकार पुन्नी सिंह ने कहा कि पूरे कार्यक्रम में तीनों वक्ताओं ने जो भी बोला वह सारगर्भित बोला।
शब्दम् अध्यक्ष किरण बजाज ने अपने संदेश में कहा कि संस्कृति और प्रकृति के प्रति प्रेम ही सच्ची देशभक्ति है और भाषा संस्कृति का अभिन्न अंग है। इस कारण हिन्दी भाषा के प्रसार के लिए उसे लचीला, सरल और सुगम तो होना ही होगा।
उ.प्र. हिन्दी संस्थान के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष उदयप्रताप सिंह का आडियो संदेश सुनाया गया एवं मुकुल उपाध्याय का संदेश पढ़कर सुनाया गया। अंत में काव्यगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें समाकालीन हिन्दी कविता के प्रमुख कवियों मदन कश्यप, सदानंद शाही, राजेश मल्ल और महेश आलोक ने अपने काव्यपाठ से श्रोताओं को मंचीय कविता से अलग हिन्दी की मुख्य धारा की कविता से परिचय कराया। कार्यक्रम में नगर के तमाम बुद्धिजीवी साहित्यकार, प्राचार्य, मीडिया कर्मी, अध्यापक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। संचालन डॉ. महेश आलोक एवं धन्यवाद ज्ञापन शब्दम् के वरिष्ठ सदस्य शेखर बजाज ने दिया।
काव्य गोष्ठी के दौरान पढ़ी गई कविताएँ।
प्रो. सदानन्द शाही-
मैं कविता की दुनिया का स्थायी नागरिक नहीं हूँ
मेरे पास नहीं है इस दुनिया का ग्रीन कार्ड
कविता की दुनिया के बाहर
इतने सारे मोर्चे हैं
जिनसे जूझने में खप जाता है जीवन
इनसे न फुरसत मिलती है, न निजात
कि कविता की दुनिया की नागरिकता ले सकूँ’
डॉ. राजेश मल्ल-
बुद्ध से
‘तुम्हारे पास ईश्वर नहीं था,
हमने तुम्हे ईश्वर बना लिया।
तुम्हें नहीं पता इतनी सी बात कि
धर्म ईश्वर के बिना नहीं चलता,
और ईश्वर डर के बिना।’
डॉ. महेश आलोक-
‘एक अच्छा दिन ऐसा हो कि कोई फूल न तोड़ा जाए किसी पेड़ से
किसी ईश्वर पर चढ़ाने के लिए
कि कोई चींटी न आए किसी जूते के नीचे
चन्द्रमा अपना जन्म दिन मनाए सूरज के घर।
एक अच्छा दिन ऐसा हो कि असंभव भी संभव हो एक दिन’
प्रोफेसर सदानन्द शाही- परिचय
हिन्दी के शैक्षणिक एवं साहित्यिक जगत् में प्रो0 सदानन्द शाही का नाम अपनी मौलिक प्रतिभा की रचनात्मकता एवं क्रियाशीलता के लिए जाना जाता है। उन्होंने एक प्रोफेसर-शिक्षक, लेखक, संपादक, चिंतक एवं प्रशासक के रूप में जो कीर्ति अर्जित की है, वह उनकी निरंतर जागरूकता एवं अभ्युदयशील कर्मठता तथा बहुमुखी प्रतिभा का प्रतिफल है।
कविता और समीक्षा के लिए पहले से ही विख्यात प्रो0 शाही ने ‘कर्मभूमि’, ‘साखी’ एवं ‘भोजपुरी जनपद’ का संपादन करके हिन्दी और भोजपुरी की समकालीन साहित्यिक-वैचारिकी में प्रभावशाली योगदान किया है।
उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक हिन्दी-विभाग की गौरवशाली आचार्य परंपरा को अपने शोध, अध्यापन एवं शोध निर्देशन के द्वारा और समृद्ध किया है।
प्रोफेसर शाही ने भोजपुरी समाज में आए उभार और भोजपुरी भाषा के उत्थान के लिए हो रहे संघर्षों की मूल भावना को आत्मसात करते हुए भोजपुरी और जनपदीय अध्ययन जैसे नये ज्ञानानुशासन का प्रस्ताव किया। वासुदेव शरण अग्रवाल ने पृथ्वी सूक्त से लेकर जनपदीय आन्दोलन चलाया था। इस अधूरे छूट गए अकादमिक कार्य को प्रो0 शाही जनपदीय अध्ययन के रूप में फिर से विकसित और प्रचारित प्रसारित कर रहे हैं। जिसे देश और विदेश में सराहना मिल रही है। प्रोफेसर शाही ने भोजपुरी अध्ययन केन्द्र की मूलभूत अधिरचना को जुटाने से लेकर उसका पाठ्यक्रम निर्मित-विकसित करने, कक्षाएं और कार्यशालाएं आयोजित करने, उसके लिए धन जुटाने और नई-नई योजनाएं बनाने तक सारा कार्य इतनी कुशलता से सम्पन्न किया कि आज भोजपुरी अध्ययन केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शताधिक विभागों की भीड़ में अलग से पहचाना जाता है। उन्होंने इस केन्द्र के माध्यम से भारत (विशेषतः भोजपुरी हिन्दी भाषी प्रदेश) और माॅरीशस के सम्बंधों को मजबूत बनाने में योग दिया।
डाॅ0 शाही ने जर्मनी के हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय के ‘साउथ एशियन इंस्टिट्यूट में’ क्।।क् फेलो के रूप में अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को अन्तरराष्ट्रीय विस्तार दिया। कबीर के माध्यम से प्रोफेसर शाही ने भारत की समावेशी मानव भावना का प्रसार जर्मनी, फ्रांस तथा इटली के विभिन्न विश्वविद्यालयों में किया। इसी क्रम में तूरिनो विश्वविद्यालय (इटली) के छात्रों-छात्राओं को हिन्दी-शिक्षण का कार्य उल्लेखनीय है। डाॅ0 शाही ने 13-15 जुलाई 2007 को न्यूयार्क (अमेरिका) में आयोजित आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में उन्होंने भारत सरकार के प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य के रूप में सहभागिता की।
2009 में माॅरीशस में आयोजित विश्व भोजपुरी सम्मेलन में प्रो0 शाही ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया और माॅरीशस में भोजपुरी को सरकारी भाषा बनवाने के प्रयत्नों को बल दिया। भोजपुरी भाषा और साहित्य की अप्रतिम सेवा के लिए माॅरीशस सरकार की ओर से वहाँ के राष्ट्रपति ने प्रो0 शाही को विश्व भोजपुरी सम्मान 2014 से सम्मानित किया है।
आपने 1996 से 2009 के बीच माॅरिशस, यू.एस., इटली, फ्रांस, जर्मनी, नेपाल की यात्राएं की हैं।
प्रो. शाही के दो कविता संग्रह ‘असीम कुछ भी नहीं’ तथा ‘सुख एक बासी चीज़ है’ के साथ एक दर्जन से अधिक आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपने अपभ्रंश और दलित साहित्य पर उल्लेखनीय कार्य किया है।
फोटो परिचय
प्रो- सदानंन्द शाही को सम्मान पत्र देकर सम्मानित करते बजाज इलेक्ट्रीकल्स के चेयरमेन श्री शेखर बजाज
मुक्तिबोध पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते प्रो- सदानंद शाही।
सभागार में उपस्थित अतिथिगण।
सभागार में अपना संदेश प्रस्तुत करते श्री शेखर बजाज।
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