'सूर संगोष्ठी एवं पदावली गायन'
'शब्दम्' की उल्लेखनीय प्रस्तुति के रूप में, वृन्दावन में सम्भवत: पहली बार, महाकवि सूर की जयन्ती मनायी गयी, तिथि थी 13 मई 2005 और स्थान था वृन्दावन शोध संस्थान।
इस विद्वत् संगोष्ठी एवं पदावली गायन की अध्यक्षता, सूरपीठ के पूर्व आचार्य डॉ. प्रेमनारायण श्रीवास्तव ने की। उन्होंने इस आयोजन के लिए 'शब्दम्' की सराहना करते हुए कहा कि ''सूर ने ब्रजभूमि में सच्चिदानन्द श्री हरि की लीलाओं का गायन कर प्राणियों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।''
डॉ. पं. अच्युतलाल भट्ट ने कहा कि ''सूर दर्शन, वल्लभाचार्य के शिष्य होने के नाते शुध्दाद्वैत सिध्दान्त से परिपूर्ण हैं। सूर ने ब्रह्म के तीनों स्वरूपों का उदाहरण अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया।''
डॉ. पं. सुरेन्द्र शर्मा ने विचार प्रगट किये कि ''सूर अपनी रचनाओं के माध्यम से जगत के सभी मनुष्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूरदास मानव में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए प्रभु की भक्ति एवं शरणागति को ही महामंत्र बताते हैं।''
पं. किशनलाल ने बताया कि सूरदास भगवान श्रीकृष्ण की अष्ट सखियों में से एक 'चंपककला' के अवतार थे। उन्होंने जगत के कल्याण हेतु अपनी रचनाओं का सृजन किया।
पं. रामगोपाल शास्त्री, श्री विशनचन्द्र शास्त्री, श्री ब्रजेन्द्र तिवारी एवं विदेशी कृष्ण भक्त कु. सेलीना, ने सूर पदावली से चुने हुए पदों का गायन कर संगोष्ठी को पूर्णता प्रदान की।
इस अभिनव आयोजन के मुख्य अतिथि थे - श्री पुरुशोत्तम लाल धानुका तथा इसमें वृन्दावन के गणमान्य नागरिक, महात्मागण तथा विदेशी भक्तों की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।
सूर पदावली गायन का पद :-
मानौ माई घन-घन अंतर दामिनी।
घन-दामिनि दामिनि घन अंतर शोभित हरि ब्रज भामिनी।
यमुना पुलिन मल्लिका मनोहर शरद सुहाई यामिनी।
सुन्दर शशि गुण-रूप-राग निधि अंग-अंग अभिरामिनी।
रच्यौ रास मिलि रसिक राय सौं मुदित भईं ब्रज भामिनी।
रूप निधान श्याम सुन्दर घन आनन्द मन विश्रामिनी।
खंजन मीन मराल हिरण छवि भाव भेद गजगामिनी।
को गति गुनहि 'सूर' श्याम संग काम विमोह्यौ कामिनी।
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