'...मइया मेरी कमरी चोरि लई...'

'शब्दम्' द्वारा संस्थापित श्रीमती विमला बजाज संगीतालय में 13 मई, 2005 को महाकवि सूरदास की 527वीं जयन्ती सूर के सरस पदों के गायन से मनायी गयी, जिसमें उपस्थित छात्र-छात्राओं ने सूर के विभिन्न पदों का गायन किया।

इस अवसर पर रवीन्द्र संगीत गायिका श्रीमती पपिया चन्द्रा ने गुरुदेव रवीन्द्र के ब्रजबुलि में रचित पदों का गायन कर सिद्ध किया कि श्री टैगोर को ब्रज संस्कृति से गहरा लगाव था।

''प्रभु मोरे अवगुन चित न धरौ..'' के पद गायन से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
गुरुदेव श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 'भानुसिंह' उपनाम से ब्रजबुलि में पदावली की रचना की। ब्रजबुलि का मूल ढाँचा मैथिली और बाँगला के सहयोग से बना है। इसमें कुछ शब्द मथुरा-वृन्दावन की बोली के मिश्रित रहते हैं।

इसमें उन्होंने ब्रज एवं बाँगला शब्दों का मिला-जुला प्रयोग किया है। गुरुदेव का कथन था कि मेरा अगला जन्म ब्रज भूमि में हो।

भानुसिंह पदावली का एक पद -

गहन कुसुम कुंज माझे, मृदुल मधुर बंसी बाजे,
बिसरि त्रास लोक लाजे, सजनि आव आव लो॥

पिनह चारु नील वास, हृदय प्रणय कुसुम रास,
हरिण नेत्रे विमल हास, कुंजवन में आव लो॥

ढाले कुसुम सुरभभार, ढाले विहग सुरबसार,
ढाले इन्दु अमृतधार, विमल रजत याति रे॥

मन्द-मन्द भृंग गुंजे, अजुत कुसुम कुंजे-कुंजे,
फुटल सजनी पुंजे-पुंजे, बकुल जुथि जाति रे॥

देख लो सखी श्याम राय, नयने प्रेम उथल जाये,
मधुर बदन अमृत सदन, चन्द्रमाय निन्दिछे॥

आव-आव सजनी वृन्द, हेरब सखी श्री गोविन्द,
श्याम को पदारबिन्द, भानुसिंह बन्दिछे॥

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