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‘वा छवि को रसखान विलोकत’

‘शब्दम्’ ने महान कृष्णभक्त कवि रसखान की स्मृति में ‘वा छवि को रसखान विलोकत’शीर्षक से मथुरा के होटल लैंड्स इन में 17 अगस्त को परिचर्चा एवं कवित्त गायन का आयोजन किया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सहयोग से हुए इस आयोजन में द ब्रज फाउंडेशन ने सहप्रायोजक के रूप में सहभागिता की।

कार्यक्रम से पूर्व सुबह उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह शब्दम् के वरिष्ठ सदस्य श्री शेखर बजाज एवं अन्य प्रमुख लोगों ने महावन स्थित रसखान बाबा की समाधि पर पुष्पार्चन किया।

होटल के सभागार में श्री उदयप्रताप सिंह की अध्यक्षता में कार्यक्रम शुरू हुआ। श्रीमती किरण बजाज ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए तीन संगठनों के संयुक्त तत्वावधान को सुंदर संयोग बताया। उन्होंने कहा कि दिलों के बीच बढ़ती जा रही दूरियों को कम करने के लिए ऐसे आयोजन उपयोगी हैं। रसखान सरीखा कृष्णक्ति का उदाहरण बेजोड़ है। ऐसे ही लोग दिलों में प्रेम की गंगा-जमुना बहाने का चमत्कार कर सकते हैं। शब्दम् का परिचय देते हुए साहित्यकार और शब्दम् सलाहकार डा. महेश आलोक ने कहा कि शब्दम् द्वारा किए जा रहे कार्य किसी समुद्र में एक बूंद का सहयोग देने के समान हैं लेकिन हिन्दी और संस्कृति के उन्नयन के लिए हम सब मिल कर एक बड़ी धारा बनने की दिशा में काम कर सकते हैं। द ब्रज फाउंडेशन के अध्यक्ष विनीत नारायण ने अपने संगठन का परिचय देते हुए रसखान के आयोजन में शामिल होने को सौभाग्य बताया। हिन्दी संस्थान के प्रधान संपादक श्री अनिल मिश्र ने संस्थान का परिचय दिया।

प्रथम सत्र में परिचर्चा आरंभ करते हुए सेंट जास कालेज आगरा के पूर्व विभागाध्यक्ष साहित्यकार डा. श्रीभगवान शर्मा ने विषय का प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा कि रसखान ने विधर्मी होते हुए भी हिन्दी काव्य और भक्ति साहित्य में जो अप्रतिम योगदान दिया है उसकी तुलना करोड़ों हिन्दू से भी नहीं की जा सकती है। मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि रसखान के काव्य ने हिन्दी साहित्य को निश्चित ही एक नई दिशा प्रदान की।

डा. सईद अहमद सईद ने अपने विचार रखते हुए कृष्णभक्ति साहित्य में रसखान के स्थान को श्रेष्ठ बताया। उन्होंने कहा कि वैष्णव भक्ति में नवधा भक्ति को पूर्ण महत्व दिया जाता है। इस भक्ति में मधुरभाव को जोड़कर इसके दस सोपान बना दिए हैं। लेकिन रसखान के काव्य में भक्ति के दस सोपान पूर्ण रूप में नहीं मिलते क्योंकि रसखान किसी बंधी हुई पद्धति पर चलने वाले कवि नहीं हैं। ये प्रेमोन्मत्त भक्त कवि के रूप में अपना प्रमुख स्थान रखते हैं। रसखान के कृष्णभक्त काव्य में माधुर्य भक्ति ने ही उत्कृष्ट स्थान पाया है।

परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए पुष्टिमार्ग में रसखान के स्थान को रेखांकित किया डा. नटवर नागर ने। उन्होंने कहा कि वल्लभाचार्य के पश्चात उनके द्वितीय पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने अपने पिता द्वारा प्रवर्तित दलितोद्धार की परम्परा को और भी अधिक वेग प्रदान किया। पुष्टिमार्गीय दीक्षा की यह विशेषता है कि यदि कोई विधर्मी पुष्टिमार्ग में दीक्षित होता है तो आचार्य उसे धर्म छोड़ने के लिये नहीं कहते वह अपने धर्म में रहकर भी वैष्णवत्व का पालन करते हुए श्रीकृष्ण की भक्ति कर सकता है। रसखान भी मुसलमान रहते हुए श्रीकृष्ण के परम भक्त हुए।

डा. केशवदेव ने कहा कि रसखान के काव्य में लोक मानस के सहज विश्वास जीवन-चिंतन धर्म-ज्ञान शिक्षा एवं व्रत-अनुष्ठानों से परिपूर्ण जीवन-शैली तथा ईश्वरीय विश्वास के दिग्दर्शन सर्वत्र झलकते रहते हैं। रसखान के कवित्त और सवैयों में ब्रज के लोक-जीवन का जीवंत रूप चित्रित है।

डा. उमेश चंद्र शर्मा ने रसखान के काव्य में अमृतत्व के रस को रेखांकित करते हुए कहा रसखान के अनुसार इन्द्रियों की सार्थकता कृष्णमयता में ही सन्निहित है। अर्थात् वाणी कर्ण कुहर हस्तपाद आदि सभी कृष्ण भक्ति में सरावोर रहें। रसखान कहते हैं कि इन्द्रियों की सार्थकता कृष्णमयता में ही सन्निहित है। उस त्रिभंगललित की रूप माधुरी को जो एक बार देख लेगा फिर उसका मन उससे जुड़ता ही चला जाता है लोक-लाज, भय-चिंता आदि से अति दूर हो जाता है। रसखान काव्य के भाग गांभीर्य की चर्चा की करते हुए डा. नीतू गोस्वामी ने कहा कि जो काव्य रचना मनुष्य के ह्रदय पर प्रभाव छोड़ने में सक्षम होती है वास्तव में वही रचना श्रेष्ठ होती है। भक्त कवि रसखान ने श्रीकृष्ण की निकटता प्राप्त करने की जो तीव्र इच्छा प्रकट करते हुए अपनी रचनाओं में जो भाव प्रदर्शित किया है वह देखते ही बनता है।

इस परिचर्चा को चरम पर पहुंचाया मुख्य अतिथि डा. सुधाकर अदीब के वक्तव्य ने। उन्होंने कहा कि ब्रज के माधुर्य के साथ श्रीकृष्ण की भक्ति को जिस प्रकार डूब कर रसखान ने निमज्जित किया है वह अनुपम है। डा. अदीब ने मधुरकंठ में कवित्त और सवैयों का गायन भी किया। प्रथम सत्र के उपसंहारस्वरूप समारोह अध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह ने रसखान के चरित्र और व्यक्तित्व की सारगर्भित मीमांसा की। उन्होंने आयोजन की सफलता पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए श्रीमती किरण बजाज को बधाई दी। श्री सिंह ने श्रोताओं की मांग पर अपनी कुछ कविताएं भी सुनाईं।

दूसरे सत्र में भक्तरंजित रससिक्त रसखान के कवित्त और सवैयों का गायन किया गया। सवैयों के गायन ने साज और आवाज की जुगलबंदी से सभागार में उपस्थित रसज्ञ श्रोताओं को विभोर किया।

भगवान श्रीनाथ के दर्शन के बाद एक मुसलमान युवक के दायरे से बाहर निकल कर रसखान को भक्त-कवि के जीवन में ले जाने वाले क्षणों को सांगीत नाटिका के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। प्रभु का दर्शन पाकर धन्य और विभोर हुए रसखान के दृश्य ने भावुकता का चरम उपस्थित कर आयोजन के शीर्षक ‘वा छवि को रसखान विलोकत’ को बखूबी रूपायित किया। शब्दम् प्रबंधक मुकेश मणिकांचन ने समारोह का संचालन किया।

शब्दम् सलाहकार मंडल के श्री उमाशंकर शर्मा डा. ए.के. आहूजा डा. महेश आलोक डा. रजनी यादव डा. धु्रवेंद्र भदौरिया श्री मंजर उल वासै श्री अरविंद तिवारी ने कलाकारों का स्वागत किया। आगरा और ब्रजमंडल के अनेक साहित्यानुरागी कवि साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने अपनी गौरवमयी उपस्थिति देकर आयोजन को सार्थक किया।

रसखान का संक्षिप्त परिचय

कृष्णभक्त कवियों में रसखान का नाम बहुत प्रसिद्ध है। इनके जन्म मृत्यु और निवास का कोई स्पष्ट विवरण नहीं है। मात्र उनकी रचनाओं में आए प्रसंगों को आधार बना कर उनका जन्म 1533 से 1548 ईस्वी के मध्य और मृत्यु 1618 ईस्वी के आसपास मानी जाती है। दिल्ली के निकट उनका मूल निवास माना जाता है।

दिल्ली में तत्कालीन सत्ता के लिए मचे द्वन्द्व और मारकाट से व्यथित कोमल युवा मन रसखान प्रेमानंद की खोज में वृंदावन आ गए। ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक युवती से उनकी प्रीति थी लेकिन उनके सांसारिक प्रेम के मार्ग पर जल्द ही ऐसा मोड़ आ गया जिसने उन्हें अलौकिक प्रेम के पथ का पथिक बना दिया। वे श्रीनाथ जी के दर्शन कर कृष्णभक्त हो गए। गोस्वामी बिट्ठलनाथ जी से दीक्षा ली। ‘दौ सौ वैष्णवन की वार्ता’ में इनके विषय में बहुत कुछ आया है।

बादशाह वंश के जन्मजात मुसलमान रसखान ने स्वयं को राज्यलिप्साजन्य द्वन्द्व से मुक्त कर जिस श्रद्धा प्रेम और भक्तिमय रस-सागर में निमज्जित किया उसी में उनके वास्तविक काव्य व्यक्तित्व का मधुर रूप ढला। प्रेम तत्व के निरूपण में उन्हें अद्भुत सफलता मिली है। उनका प्रेम वर्णन बड़ा सूक्ष्म व्यापक एवं विशद है। उनके काव्य का प्रमुख रस श्रंगार है जिसके आलम्बन हैं - श्रीकृष्ण। दूसरा प्रमुख रस वत्सल है। श्रीकृष्ण के बाल रूप की माधुरी का वर्णन उन्होंने यद्यपि गिने-चुने छन्दों में ही किया है पर उनकी काव्यात्मक गरिमा सूर और तुलसी के बाल-वर्णन की समता करने में भली भांति सक्षम है।

रसखान की ‘प्रेमवाटिका’ और ‘दानलीला’ कृतियों के अतिरिक्त उनकी संपूर्ण वाणी मुक्तक सवैयों में आबद्ध है। वर्तमान में ‘सुजान रसखान’ सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसमें 181 सवैये 17 कवित्त 12 दोहे और 4 सोरठे हैं। ‘प्रेम वाटिका’ में राधाकृष्ण को प्रेमोद्यान का मालिन-माली मान कर प्रेम के गूढ़ तत्व का सूक्ष्म निरूपण किया गया है।

‘दानलीला’ केवल 11 छंदों का छोटा सा पद्य प्रबंध है। जिसमें राधाकृष्ण का संवाद वर्णित है। एक अन्य कृति ‘अष्टयाम’ भी प्रकाश में आई है। इसमें दोहा के माध्यम से श्रीकृष्ण के प्रातः जागरण से लेकर रात्रि शयनपर्यंत तक की दिनचर्या एवं क्रीड़ाओं का वर्णन है।

वास्तव में काव्य रचना रसखान का साध्य नहीं था और न ही उनकी वाणी का विलास धन-वैभव की प्राप्ति के निमित्त था। उन्होंने तो अनन्त-अलौकिक रस के आगार श्रीकृष्ण के लीलागान के रसास्वादन में ही स्वयं को कृतकृत्य समझा।

रसखान की रचनाओं की बानगी-

सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं
जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुवेद बतावैं।
नारद से सुक व्यास रटैं पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियां छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं।

धूर भर अति सोभित स्याम जु तैसी बनी सिर संqदर चोटी
खेलत खात फिरै अंगना पग पैंजनी बाजती पीरी कछौटी।
वा छवि को रसखान विलोकत बारत काम कला निज कोठी
काग के भाग बडे सजनी हरि हाथ सौं लै गयौ रोटी।

मानुष हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन
जो पशु हौं तो कहा बस मेरौ चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो लियो कर छत्र पुरंदर कारन
जो खग हौं तो बसेरौ मिलै कालिंदिकूल कदम्ब की डारन।

मोतिन माल बनी नट के लटकी लटवा लट घूँघर वारी
अंग ही अंग जराव लसै अरू सीस लसै पगिया जर तारी।
पूरब पुन्यनि ते रसखानि सु मोहिनी मूरति आनि निहार
चार्यौ दिसान की लै छबि आनि कै झाँकें झरोखे में बाँके बिहारी।

सुनियै सबकी कहियै न कछू रहियै या मन-बागर में,
करियै ब्रत नैम सचाई लिये जिनतैं तरिये मन सागर में।
मिलियै सबसौं दुरभाव बिना रहियै सतसंग उजागर में
रसखान गुबिन्दहिं यौं भजिये जिमि नागरि को मन गागर में।

मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं गुंज की माल गरे पहिरौंगी,
ओढ़ पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी।
भावतो वाहि मेरौ रसखान सो तेरे कहे सब स्वांग करौंगी
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।

फोटो परिचय -भक्तकवि रसखान की स्मृति में आयोजि ‘वा छवि को रसखान विलोकत’ समारोह में मंचासीन अतिथि एवं विद्वतजन।

महावन गोकुल में रसखान की समाधि पर पुष्पार्चन करते हुए आयोजक संस्थाओं के मुख्य पदाधिकारी।

आयोजन स्थल पर की गई मनभावन पुष्पसज्जा

आयोजन का शुभारंभ करते हुए श्री उदय प्रताप सिंह एवं श्रीमती किरण बजाज

आयोजन की स्मारिका का विमोचन करते हुए श्री शेखर बजाज श्रीमती किरण बजाज श्री उदय प्रताप सिंह डा. सुधाकर अदीब एवं श्री विनीत नारायण।

स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए श्रीमती किरण बजाज

अध्यक्षीय संबोधन प्रस्तुत करते हुए श्री उदय प्रताप सिंह

कवित्त-सवैयों के गायन से कलाकारों ने समां बांधा

नाट्य कलाकारों ने कुछ इस तरह से रसखान के चरित्र को जीवंत किया।

प्रस्तुति के समापन पर आयोकजन और वक्तागण साथ-साथ।

सभागार में श्रोता के रूप में उपस्थिति कवि साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी।


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