‘हर बेटी को दुर्गा बनना होगा’ विषय पर विचार गोष्ठी

दिनांक - 10.10.2014
स्थान- संस्कृति भवन, हिन्द परिसर, शिकोहाबाद

‘‘आज के आधुनिक युग में भी बेटे-बेटियों में जन्म से ही होने वाले भेद-भाव के कारण अभी भी बेटियां सामाजिक एवं राष्ट्रीय योगदान का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं।” शब्दम् ने इसी विषय को गहराई से उठाते हुये ‘हर बेटी को दुर्गा बनना होगा’ विषय पर विचार गोष्ठी की। जिसमें युवा वर्ग व समाज को नई दिशा दे चुके बुद्धजीवी वर्ग के बीच विचारों का आदान-प्रदान हुआ। नूतन और पुरातन विचारों का संगम एक साथ, एक ही मंच पर, विषय को नए आयामों तक ले गया।

कार्यक्रम में सर्वप्रथम सभी छात्रों एवं बुद्धजीवियों को केन्द्रीय आयोजन के भाव ‘हर बेटी दुर्गा है’ पत्र दिया गया।

डॉं. महेश आलोक ने शब्दम् अध्यक्ष की मार्मिक अपील प्रस्तुत की। जिसमें शब्दम् अध्यक्ष ने कहा ‘शक्ति की आराधना के लिए नारी को माध्यम माना गया है। पूरा समाज इस मान्यता को स्वीकार करता है और नारी स्वरूपा शक्ति की पूजा करता है लेकिन वर्तमान समय की एक बेहद तकलीफदेह त्रासदी यह है कि वास्तव में आज की नारी शक्ति, चारों ओर संकटों से घिरी असहाय और अबला बन कर रह गई है।’

जे.एस. काॅलेज के छात्र विक्रान्त यादव ने कहा कि बहनों को सशक्त करने के लिए उन्हें सर्वप्रथम परिवार में पुत्र के समान अवसर देने की परम्परा प्रारम्भ करनी होगी। आज भी हम समाज में पौराणिक रीतियों को ढो रहे हैं जो अब कुरितियों में बदल चुकी है जैसे- जौहर प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज, परदा यह सब पहले मुस्लिम राजाओं के अत्याचारों के कारण सामाजिक रीति बनी। दहेज प्रथा का प्रारम्भ भी नव विवाहितों का नया परिवार शुरू करने के लिए किया गया था, आज दहेज प्रथा सामाजिक स्तर को दिखाने का माध्यम बन गया है और इन प्रथाओं का सबसे ज्यादा नुकसान बेटी को उठाना पड़ता है। इसके विरोध में आवाज उठानी होगी, यानी हर बेटी को दुर्गा बनना होगा।

छात्रा सरिता यादव ने कहा कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा बेटी, बेटों की बराबरी हासिल कर सकती है।

छात्रा नेहा ने कहा कि लड़कियों को स्वयं ही सशक्त होना होगा। हमें हर कुरीति/बुराई का विरोध करना होगा, चाहे वह स्वयं हमारे परिवार में ही क्यों न हो।

डॉं. सत्यवीर सिंह ने कहा कि ‘प्रारम्भ से हमारा समाज पुरूष प्रधान सोच का रहा है। अब समय आ गया है कि हमें अपनी मानसिकता बदलने पर विचार करना होगा।’

डॉं. धु्रवेन्द्र भदौरिया ने मानसिकता की सोच को आगे बढाते हुए कहा कि ‘आज पढे-लिखे लोग ही सबसे ज्यादा अल्ट्रासाउण्ड़ सेन्टर पर पुत्र या पुत्री का पता करने पहुंचते हैं। उन्होंने आज के समाज की यह धारणा भी पूरी तरह गलत है कि स्त्री शारीरिक एवं मानसिक दृष्टिकोण से पुरूष से कमजोर होती है, यदि पुरूषों के समान अवसर स्त्रियों को मिलें तो स्त्रियां पुरूषों के बराबर नजर आएंगी। ’

कार्यक्रम के मुख्यवक्ता श्री अरविन्द तिवारी ने अपनी रचना ‘नहीं बजती है ढोलक की थाप बेटी के पैदा होने पर, खूब बजती है थाप बेटी के विदा होने पर’ से शुरू करते हुए अपने विचारों को कहा कि बेटियों के साथ होने वाले यौन दुराचारों में 60 प्रतिशत लोग परिवार वाले होते हैं, अतः बेटियों को स्वयं खड़ा होना होगा, उन्हें विरोध स्वरूप दुर्गा बनना ही होगा।

कार्यक्रम अध्यक्ष श्री उमाशंकर शर्मा ने कहा कि आज हुयी इस वार्ता में बहुत से नये विचार इस मंच पर आए, छात्र/ छात्राओं ने भी अपने युवा अंदाज में अपनी भावनाओं को रखा, जहां तक कुरीतियों की बात है, सनातन धर्म के वैदिक काल यह हमारे समाज का हिस्सा नहीं थी, धीरे-धीरे स्थितियां बदली और ये कुरितियां हमारे समाज का हिस्सा बन गईं।

आज का असुर कही और नहीं, हमारे खुद के अंदर है आवश्यकता है अपने कुसंस्कारों को समाप्त करने की। दुर्गा बनने का अर्थ इन्हीं कुसंस्कारों पर विजय पाना है।

धन्यवाद ज्ञापन श्री मंजर उल-वासै ने किया।

विचार गोष्ठी आयोजन में अपने विचार प्रस्तुत करती छात्रा।

गोष्ठी में आमंत्रित छात्र-छात्राओं का समूह छायांकन।

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