ग्रामीण कृषक कवि सम्मेलन
कार्यक्रम विषय :ग्रामीण कवि सम्मेलन
दिनांक : 15 जून 2011
संयोजन : शब्दम्
आमंत्रित कवि : श्री उदयप्रताप सिंह, श्री प्रताप दीक्षित, श्रीमती व्याख्या मिश्रा, श्री निर्मल चन्द्र सक्सेना, श्री केषव शर्मा, चन्द्र प्रकाष यादव ‘चन्द’
असली भारत आज भी गाॅंवो में बसता है। कृषि प्रधान इस देश में भले ही किसान को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन उनका जीवन वास्तव में उतनी ही अधिक विसंगतियों से भरा है। शब्दम् ने गाॅंवों की मलीन हो रही सभ्यता में सांस्कृतिक सरोकरों को सिर उठाने का उचित अवसर प्रदान करने की शुरूआत की है। ग्रामीण कवि सम्मेलन के द्वारा खेत की माटी में साहित्यानुराग के बीज बोने का क्रम बदस्तूर जारी है।
इस बार के ग्रामीण कवि सम्मेलन का आयोजन िशकोहाबाद विकास खण्ड के गांव लखनपुरा स्थित आश्रम पर किया गया। सनातन परंपरा के देवी देवताओं के मंदिरों के साथ-साथ प्राकृतिक सुशमा से भरे पूरे इस स्थल की एक आध्यात्मिक केन्द्र जैसी मान्यता है। 15 जून को कवि सम्मेलन वाले दिन गुरूपूर्णिमा के सुयोग से वहां के लोगों का उत्साह दुगना कर दिया। ग्रामीण कवि सम्मेलन के क्रम की सर्वाधिक भीड़ इस समारोह में उमड़ी। कवियों की सरस वाणी और परिवेष के अनुकूल काव्यपाठ में ग्रामीण जन इस कदर बंध गये कि यकायक आयी बेमौसम तेज बारिश में भी टस से मस नहीं हुए।
वरिष्ठ कवि और पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह की अध्यक्षता में व्याख्या मिश्रा (लखनुऊ), निर्मल सक्सेना (कासगंज), डा. केशव शर्मा (आगरा), प्रताप दीक्षित (आगरा), एवं चन्द्र प्रकाश यादव (फिरोजाबाद) ने अपनी रसमयी रचनाओं से श्रोताओं को रस सिक्त किया। समारोह का संचालन करते हुए सलाहकार मंडल के डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया एवं मुकेश मणिकान्चन ने भी अपना काव्यपाठ किया। लखनपुरा ग्राम्य कवि सम्मेलन में ग्रामीण श्रोताओं ने काव्य की पूरी समझ का परिचय दिया। खेतों में हल चलाने वाले किसान और मजदरों के हाथ सुधी श्रोताओं की भांति एक-एक पंक्ति पर उसके रूझान के अनुरूप ताली बजाने के लिए उठते रहे।
वरिष्ठ कवि श्री उदयप्रताप सिंह ने कहा कि गाॅंधी जी कहते थे कि असली भारत गाॅंव में रहता है। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से किसानों को जागृत किया। श्री उदयप्रताप सिंह ने अपनी कविता ‘‘वतन के कृषक और मजदूर, देश की माटी के सिन्दूर, उठो मेरे मीत उठो’’ से देश प्रेम की भावना को जागृत किया। उन्होंने कहा ‘‘गाॅंव जितना प्रेम एवं सम्मान मिलता उतना कहीं नहीं-- शहर में माॅ-बाप आते है मुसीबत की तरह, गाॅंव में आते हैं मेहमानों की तरह गाॅंव में गये तो अपने पराये राजी प्यार देते है। होटल में ठहराते हैं शहरों में।
आजादी का सूरज चमका शहरों के आकाश में,
गाॅंव पड़े है अभी गुलामी के इतिहास में।।
कासगंज के कवि निर्मल सक्ेसना ने कहा कि गाॅंव ने समाज को क्या नहीं दिया। कविता के माध्यम से कहते है।
गाॅंव मजदूर देता खेत खलियान देता । वास्ते जीने के सभी सामान देता।
शरहदों की सुरक्षा रात-दिन करते जो जागकर देश पर हो कुर्बान जहाॅं में सबसे सुन्दर है मेरा गाॅंव।
पर्यावरण सुरक्षा एवं ध्रुमपान का विरोध करते हुए कहा कि हमें खुशहाल रहना है तो गाॅंव की ओर जाएगें।
पुराने अनुभवों से नया भारत बनायेंगे। रहे पर्यारण उत्तम नये हम वृक्ष लगायेंगे। शहरों की दौड में शामिल गाॅंव के लोगों, बहुत कीमती है जीवन व्यसनों में न खोय ये तम्बाकू मंदिरा फसल है मौत की कभी इन्हें जीवन में न बोना।
श्री मुकेश मणिकान्चन ने समाज में जो परिवर्तन हो रहा है उसके बारे में कहा ‘‘प्यार का तो पुराना चलन हो गया। प्रीति की भावना का दमन हो गया। द्वेस की ग्रंथियाॅं सभी के मन में भरी है, आज लोगों का क्या आचरण हो गया।
आगरा से आये डा0 केशव शर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से कहा‘‘ अब हम किसे दोश दें और करे हम विलाप पीर। आॅंसुओं की गली में फरिस्ते मिले, टूटे-टूटे से बिखरे रिस्ते मिले टूटे रिस्तों की मंेहदी सजाते रहे लोग आते रहे जाते रहे। आगरा से जाये श्री प्रताप दीक्षित ने ग्रामीण जीवन के बारे में कहा कि- ‘‘गाॅंव शहरों की चला-चली से अच्छा लगता है। उगता सूरज सांझ ढ़ली से अच्छा लगता है’’
‘‘जिन्दगी कहाॅं से कहॅं खींच लायी एक ओर कुॅंआ सब ओर खाई है’’ फिरोजाबाद से आये कवि चन्द्र प्रकाश यादव चन्द्र ने गुटखा, तम्बाकू का विरोध अपनी कविता के माध्यम से किया।
गुटखा और तम्बाकू में आदी सब भये, कंचन की काया को ले डूबि भये।
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