हिन्दी दिवस

कार्यक्रम - हिन्दी दिवस
दिनांक- 22 सितम्बर 2014
स्थान- संस्कृति भवन, हिन्द परिसर, शिकोहाबाद

मंचासीन-

शब्दम् के बार्षिक कार्यक्रमों की श्रृखंला में वर्ष 2014 हिन्दी दिवस पर हिन्दी के 83 मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया गया। सम्मानित होने वाले छात्रों में इण्टरमीडिएट और स्नातक, स्नातकोत्तर कक्षाओं के ऐसे छात्र-छात्राएं थे, जिनके इण्टरमीडिएट में 80 प्रतिशत व स्नातक, स्नातकोत्तर में 75 प्रतिशत या उससे अधिक अंक थे।

कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं का उत्साह शीर्ष पर था, हिन्दी के लिए सम्मान प्राप्त करने पर सभी छात्र-छात्राओं के चहरे पर हर्ष उल्लास और गौरव का भाव स्पष्ट था और उनके शिक्षक भी खुद को गौरवान्वित अनुभव कर रहे थे।

प्रत्येक छात्र इस संकल्प के साथ मंच पर आ रहा था कि वह अपने शिक्षकों से प्राप्त हिन्दी की इस शिक्षा के माध्यम से अपने भविष्य को तथा भारत को नई ऊचाईयों पर पहुँचाएगा।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में शब्दम् अध्यक्ष श्रीमती किरण बजाज ने अपने संदेश में कहा ‘‘हिन्दी भारत के जन-जन को जोड़ने की भाषा है। भारतीय संस्कृति को बढावा देने और मजबूत करने के लिए हिन्दी को हर क्षेत्र में सम्मान और स्थान देना होगा। अक्सर हम अपनी विषमताओं और विफलताओं का दोष हिन्दी को देने लगते हैं। सफलता की ऊंचाइयां छूने के लिए आपकी पकड़ अपने विषय के ज्ञान पर आधारित होना जरूरी है। अपनी अल्पज्ञता का दोष किसी भाषा को नहीं दिया जा सकता। अब उसके उचित मानसम्मान के लिए भी हमीं को प्रयास करने होंगे, क्योंकि इसके लिए कोई विदेशी नहीं आएंगे, अगर हमारा ज्ञान सक्षम है, तो हिन्दी में उस ज्ञान को लिखने बोलने और समझाने की पूरी क्षमता है, आवश्यकता है अपने ज्ञान को और सुदृढ़ बनाएं।”

प्रो नंद लाल पाठक ने अपने संदेश में कहा कि ‘‘मानवता की सबसे बड़ी सम्पत्ति भाषा है, भाषा मनुष्य से मनुष्य को जोड़ती है। भारत के विभिन्न प्रदेशों को हिन्दी जोड़ती रही है। भाषाओं के बीच पुल बनाती रही हैं, हिन्दी दिवस को हम हिन्दी भाषी लोग भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाएं तो हमें अन्य भारतीय भाषाओं का स्नेह और आदर मिलेगा, भाषा का मामला बहुत नाजुक होता है, विदेशी नेता हमारे देश में आकर, हिन्दी बोलकर हमारा दिल जीत लेते हैं। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी जहां जाते हैं वहां की भाषा से प्रारम्भ करते हैं।

हम लोग वाग्देवी की पूजा करते हैं और वाणी के उपासक हैं, हमें सारे विश्व में हिन्दी को लोकप्रिय बनाना है इसके लिए हमें अन्य भाषाओं का भी सम्मान करना होगा।”

श्री उदयप्रताप सिंह ने अपने संदेश में कहा कि “‘हिन्दी रोजगार परक भाषा कैसे बन सकती है’ एक बहुत ही गम्भीर विषय है इसके लिए हमें हिन्दी को सूचना प्रोद्यौगिकी से जोड़ना होगा। हमें हिन्दी को रोजगार परक बनाने के लिए लचीलापन अपनाना होगा, हमें तकनीकी शब्दों को यथावत हिन्दी शब्दकोश में लेना होगा, जैसे- अगर हम कार की बात करें तो गेयर, क्लिच, ब्रेक ये सब अंग्रेजी के तकनीकी शब्द हैं जिनके लिए हिन्दी में कोई भी शब्द नहीं हैं। हमें लचीलापन दिखाते हुये इन शब्दों को हिन्दी शब्दकोश में ले लेना चाहिए। हमें अन्य भारतीय भाषाओं को भी हिन्दी के साथ लेकर चलना होगा।

आज अंग्रेजी बोलना सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है, अगर हम अंग्रेजी को हटाकर हिन्दी को प्रतिष्ठा से जोड़ लें तो निश्चित रूप से हिन्दी रोजगार परक भाषा बन सकती है।

मेरा व्यक्तिगत मत है कि आज भारत के व्यवसाय में विदेशियों की रूचि को देखते हुए, हिन्दी का भविष्य बहुत उज्जवल है क्योंकि जो भी व्यक्ति भारत से व्यवसाय करेगा उसे हिन्दी का ज्ञान लेना होगा।

चाहे जो हो धर्म तुम्हारा, चाहे जो वादी हो।

नहीं जी रहे गर देश के लिए तो अपराधी हो।।”

छात्र सम्मान कार्यक्रम के साथ ‘‘हिन्दी रोजगारपरक भाषा कैसे बने ?’’ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।

जिसमें विचार रखते हुए मुख्यवक्ता डा. महेश आलोक ने कहा कि ‘आज की हिन्दी को मीडिया ने सबल बना दिया है और कम्प्यूटर से जुड़ने के बाद आज की हिन्दी पूरे विश्व में पहुंच गई है।’

डॉं. आर. के सिंह ने कहा कि ‘ हिन्दी के छात्र-छात्राओं को हिन्दी से रोजगार प्राप्त करने के लिए हिन्दी के उच्चस्तरीय ज्ञान के साथ-साथ, अंगे्रजी का भाषायी ज्ञान भी लेना होगा।’

मुख्य अतिथि श्री उमाशंकर शर्मा ने कार्यक्रम में उपस्थित शिक्षकगणों से निवेदन करते हुये कहा कि ‘वह हिन्दी के माध्यम से छात्र-छात्राओं में संस्कारों के बीज भर दें और यह संस्कार स्वतः ही हिन्दी को रोजगार परक भाषा बना देंगे।’

कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन श्री मंजर उल-वासै ने दिया।

हिन्दी दिवस पर सम्मान समारोह कार्यक्रम में सभागार में उपस्थित गणमान्य

छात्र को ‘सम्मान पत्र’ देते हुए मुख्य अतिथि।

सम्मानित छात्र-छात्राओं का समूह छायांकन।

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