'हिन्दी का भविष्य' संगोष्ठी
दिनांक 14 सितम्बर, .5 को हिन्दी दिवस के अवसर पर विचार गोष्ठी का आयोजन ''हिन्दी के भविष्य पर चर्चा'' करने के लिए किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि, प्रसिध्द उद्योगपति एवं साहित्यकार श्री बालकृष्ण गुप्त ने कहा कि हिन्दी को हम अपने व्यवहार व आचरण में लायें, हिन्दी का भविष्य उज्जवल है। हिन्दी हमारी राष्ट्रीयता और हमारे संस्कारों से जुड़ी है।
उन्होंने 'शब्दम्' द्वारा किये जा रहे साहित्यिक-सांस्कृतिक प्रयासों की सराहना की। इससे पूर्व विचार गोष्ठी का शुभारम्भ डा. ध्रुवेन्द्र भदौरिया ने सरस्वती वन्दना एवं हिन्दी गीत से किया। इस अवसर पर उपस्थित विभिन्न विद्वानों यथा - डा. चन्द्रपाल शर्मा 'षीलेष', डा. श्यामवृक्ष मौर्य, डा. महेष आलोक, श्री मंजर-उल-वासै, श्री बी.पी. सिंघल आदि ने अपने विचार प्रकट किये, जिसका निष्कर्ष था कि -
'हिन्दी के विकास में कोई कमी नहीं पर हिन्दी भाषियों ने त्रिभाषा फार्मूला अपनाने में दक्षिण की कोई भाषा नहीं सीखी। हमें दक्षिण भारतीय भाषाओं के प्रति भी उदार होना चाहिए। हिन्दी ही ऐसी भाषा है, जिसमें जैसा बोलते हैं वैसा लिखते हैं। जब तक हिन्दी व्यावसायिक भाषा नहीं बनेगी, तब तक उसका पूर्ण विकास नहीं होगा। भारत में विदेषी कम्पनियाँ अपने उत्पादों का नाम भारत की विभिन्न भाषाओं में लिखकर विज्ञापित करते हैं। हमें भी हिन्दी को लोकप्रिय बनाने के लिए अन्य भारतीय भाषाओं को सम्मान देना होगा।'
विचार गोष्ठी का सफल संचालन नगर के जाने-माने हिन्दी सेवी कवि साहित्यकार श्री मंजर-उल-वासै ने किया। उन्होंने अपने प्रारम्भिक वक्तव्य में 'शब्दम्' को हिन्दी सप्ताह सार्थक रुप से मनाने के लिए बधाई दी।

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